स्वास्थ्य और पसीना - Health And Sweat

पसीना आना एक प्राकृतिक प्रक्रिया है। यह और बात है कि का लोगों को पसीना कम आता है और कुछ को अधिक। गमी से अधिक परिश्रम करते समय सभी को सामान्य से कुछ अधिक पसीना आता है। जिससे ना तो घबराना ही चाहिए और न ही शंकित होना चाहिए।

पसीने के कारण - Reason Of Sweating In Hindi

मनुष्य एक समतापी (कोल्ड ब्लडेड) प्राणी है, अर्थात् वातावरण के तापक्रम में आने वाले सामान्य बदलाव के प्रति मानव शरीर लगभग अप्रभावित रहता है। क्योंकि वातावरण के तापक्रम में उतार-चढ़ाव होने, काम करने तथा हमारे द्वारा ग्रहण किए गए आहार के ऑक्सीकरण से, जब हमारे शरीर की गर्मी में वृद्धि होती है, तो हमारे शरीर में कुछ ऐसी प्रतिक्रियाएं (जिन्हें ताप नियंत्रक प्रणालियां कहा जाता है) होती हैं। जिनके कारण हमारे शरीर का तापक्रम बढ़ने या घटने नहीं पाता, बल्कि सामान्य अर्थात् 98.5° फारेनहाइट या 37° सेंटीग्रेड ही बना रहता है।

इनमें तीन प्राकृतिक तरीके है

  • पसीने का आना या स्वेद उत्सर्जन।
  • त्वचा के नीचे की रुधिर कोशिकाओं में रक्त के प्रवाह को नियंत्रित करना।
  • शरीर में कंपकंपी का आना या पेशियों में कुछ क्षणों के लिए संकुचन।

पसीना क्या है व कैसे बनता है - What Is Sweating And How It Is Formed In Hindi

पसीने का अधिकांश भाग पानी होता है, जिसमें विभिन्न प्रकार के लवण जैसे, सोडियम व पोटिशयम क्लोराइड तथा दूसरे रासायनिक पदार्थ घुले रहते हैं, जिनके कारण इसका स्वाद खारी होता है।

पसीना ‘स्वेद ग्रंथियों’ या ‘स्वीट ग्लेंड्स’ में बनता है, जो हमारे शरीर की त्वचा के नीचे विशेष रूप से हाथों की हथेलियों, पैरों के तलवों तथा सिर की त्वचा के नीचे स्थित होती है। सामान्यतया मानव में इनकी संख्या 20 से 30 लाख तक होती है।

स्त्रियों में स्वेद ग्रंथियों की संख्या पुरुषों की तुलना में अधिक होती है, फिर भी ‘टेस्टो-स्टीरोन हार्मोन के कारण स्त्रियों की पुरुषों से कम पसीना आता है।

पसीना कब इन स्वेद ग्रंथियों में बने, इसका आदेश हमारे मस्तिष्क के हाइपोथैलेमस भाग द्वारा दिया जाता है। एक स्वस्थ मनुष्य के मस्तिष्क का यह भाग एक तापस्थायी या थर्मोस्टेट का कार्य करता है।

किसी भी कारण से हमारे शरीर के गर्म होने से उसमें उपस्थित रक्त की उष्मा पाकर गर्म होता है और जब यह गर्म रक्त मस्तिष्क के हाइपोथैलेमस भाग में पहुंचता है, तो वह उसे उत्तेजित कर देता है। फलतः परानुकंपी तंत्रिकाओं के माध्यम से शरीर के ताप को सामान्य व नियंत्रित रखने वाली क्रियाएं जैसे पसीने का स्वेद ग्रंथियों में बनना प्रारम्भ हो जाता है। जो शरीर के विभिन्न भागों से उत्सर्जित होने लगता है।

जब शरीर के बाहर का वातावरण काफी गर्म एवं सूखा (शुष्क) हो, तो वह पसीना वाष्प बनने लगता है। वाष्प बनने की प्रक्रिया में पसीना त्वचा से ऊष्मा लेता है।

जिस प्रकार एक मिट्टह के घड़े में रखा पानी अपनी ऊष्मा खोकर ठंडा होने लगता है, ठीक ऐसी ही प्रक्रिया हमारे शरीर में तब तक होती है, जब तक शरीर का ताप सामान्य नै हो जाए। शरीर के ताप को सामान्य बनाए रखने की इस प्रक्रिया को ‘समस्थैतिक क्रिया’ कहते हैं।

गर्मियों के दिनों में मानव शरीर, सामान्य तापक्रम को बनाए रखने के लिए लगभग आधा लीटर पसीना प्रति घंटे की दर उत्सर्जित करता है, जिससे शरीर में बढ़ी हुई गर्मी की लगभग 125 कैलोरी ऊष्मा (ऊर्जा) प्रति घंटे की दर से कम हो जाती है। इस प्रकार हम ठंड का अनुभव करते हैं।

जब हम तेज धूप एवं गर्मी में काम करते हैं, तो पसीना भी ज्यादा आता है। ऐसे में सामान्य से कहीं अधिक लगभग 4 लीटर तक पसीना एक घंटे में बनता है जिसका कुछ भाग तो वाष्प बन जाता है परन्तु अधिकांश पसीना पानी की तरह हमारे शरीर से बहने लगता है। वैसे तो इतना पसीना बहना कोई खतरे की बात नहीं, परन्तु पसीने के साथ हमारे शरीर के लिए आवश्यक लवण व पानी भी उत्सर्जित हो जाते हैं।

आमतौर पर हम देखते हैं कि उमस भरे व अधिक आर्द्रता वाले वातावरण में जब, हवा में पहले से ही नमी या वाष्प अत्यधिक होती है, तब भी हमें पसीना आता है। चूंकि इस वातावरण में पसीना वाष्पीकृत या सूख नहीं पाता तो हमारे शरीर की गर्मी को भी कम नहीं कर पाता है। अर्थात् हमारी ताप नियंत्रक प्रणाली से इस पसीने का कोई भी सम्बन्ध नहीं होता। प्रश्न यह उठता है कि ऐसे में फिर पसीना क्यों आता है। परन्तु इस प्रश्न का कोई संतोषप्रद उत्तर अभी भी वैज्ञानिकों के पास नहीं। है। बस यही कहा जा सकता है कि पसीना आना भी ऐसी ही स्वाभाविक प्रक्रिया है, जैसे मल-मूत्र का त्याग करना।

पसीना बहने से लाभ - Benefits From Sweating In Hindi

सामान्य मात्रा में पसीने का आना निःसंदेह किसी व्यक्ति के अच्छे स्वास्थ्य का द्योतक है।

  • सुचारू ताप नियंत्रक प्रणाली का सूचक: यदि पसीना आता रहे तो निश्चिंत रहें कि हमारी ताप नियंत्रक प्रणाली सही कार्य कर रही है। उदाहरणतया लू लगने (हाइपरथर्मिया) से यह प्रणाली नष्ट हो जाती है और हमारे शरीर का ताप अत्यधिक (40° सेंटीग्रेड से भी अधिक) बढ़ जाता है। रोगी बेहोश होने लगता है तथा उसकी त्वचा सूखने लगती है।

  • बीमारियों के खतरों का सूचक: यदि बैठे-बिठाए ही कोई व्यक्ति एकदम पसीने में नहा जाए तो उसे तुरन्त ही डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए क्योंकि अक्सर दिल का दौरा पड़ने पर या उसके पहले मनुष्य को बहुत पसीना आता है। चूंकि पसीने के साथ हमारे शरीर में उपस्थित बहुत से विषैले पदार्थ भी शरीर से निष्कासित होते हैं, इसलिए थोड़ी मात्रा में पसीने का आना आवश्यक है। इससे त्वचा के रोम छिद्र खुले रहते हैं और त्वचा को ऑक्सीजन मिलती है, जिससे त्वचा चमकदार व मुलायम बनी रहती है।

पसीने के साथ अतिरिक्त तेल भी त्वचा से हट जाता है जिससे वातावरण में शामिल धूल के कण व बहुत से कीटाणु त्वचा से चिपक नहीं पाते। यदि पसीना ना आए तो मिट्टी व कीटाणु तेल में मिलकर त्वचा के नीचे व ऊपर जमा होने लगते हैं। जिससे कील-मुहांसों का जन्म होता है। तथा हमारी त्वचा अन्य बीमारियों की लपेट में भी आ जाती है।

अत्यधिक पसीना बहने से हानि - Loss Of Excessive Sweating In Hindi

पसीना बहने से विषैले पदार्थों का तो उत्सर्जन होता ही है, साथ ही हमारे शरीर के लिए आवश्यक सोडियम लवण भी उत्सर्जित हो जाते हैं। यदि पसीना ज्यादा आए तो रक्त में सोडियम का स्तर घटने व पोटेशियम का स्तर बढ़ने लगता है। इसे ‘हाइपर पोटेशियम' कहते हैं।

अधिक पसीना बहने से शरीर में पानी व लवणों की कमी के कारण सिर में दर्द, नींद, चिड़चिड़ापन व कभी-कभी उल्टियां भी आने लगती हैं। व्यक्ति कोई निर्णय नहीं ले पाता। शरीर ठंडा पड़ने लगता है और सांस तथा नाड़ी तेज चलने लगती है।

ऐसे में रोगी को टमाटर के रस में नमक व पानी मिलाकर थोड़ी-थोड़ी मात्रा में देते रहना चाहिए। नींबू-पानी भी शरीर में आयी लवणों की कमी को दूर करता है। गर्म वातावरण में देर तक काम करते समय खाली पेट ना रहें तथा उपर्युक्त चीजों का उपयोग करते रहें। मगर ध्यान रहे, अष्टि कि मात्रा में नमक खाने या पीने से पेट के अल्सर व उच्च रक्तचाप का खतरा हो सकता है।

पाउडर व दुर्गन्धनाशकों का उपयोग - Use Of Powder And Deodorant In Hindi

स्वाभाविक रूप से पसीना आना हमारे स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद है। परन्तु अधिकतर लोग पसीना आने से घबराते हैं। यह ठीक है कि विषैले पदार्थों व लवणों से युक्त किसी-किसी का पसीना बहुत दुर्गन्धमय होता है, परन्तु ना तो इससे बचने के लिए किसी पाउडर इत्यादि का और ना ही दुर्गन्धनाशकों का उपयोग करना चाहिए।

पाउडर लगाने से त्वचा के रोग-छिद्र बन्द हो जाते हैं, जिससे उनके द्वारा पसीना व विषैले पदार्थ त्वचा से निकल नहीं पाते, परन्तु कील-मुहांसे निकलने लगते हैं। त्वचा में सूजन आ जाती है। यही नहीं, इन पदार्थों को शरीर से बाहर निकालने के लिए गुर्दो को अतिरिक्त कार्य करना पड़ता है।

आमतौर पर पसीने के दुर्गन्ध दूर करने के लिए दो प्रकार के दुर्गन्ध निाशकों का उपयोग किया जाता है।

  • क्रीम दुर्गन्धनाशक: इनमें हानिकारक रसायन फार्मेल्डिहाइड तथा प्रोफीलेनग्लीओल होते हैं। कुछ क्रीमों में आक्सीक्वीनोलीन सल्फा का प्रयोग होता है जिससे हमारे केन्द्रीय तंत्रिका-तंत्र पर कुप्रभाव पड़ता है।

  • स्टिक दुर्गन्धनाशक: इनमें उपर्युक्त रसायनों के अतिरिक्त कास्टिक सोडा (सोडियम हाइड्रोक्साइड) भी होता है, जो त्वचा की नाजुक कोशिकाओं को जला देता है, फलस्वरूप त्वचा का रंग काला पड़ने लगता है। स्टिक बनाने में प्रयुक्त पेट्रोलेक्टस जो कि पेट्रोलियम जैली से प्राप्त किए जाते हैं, त्वचा में खुजली व अन्य रोग पैदा कर सकते हैं।

  • कुछ दूसरे दुर्गन्धनाशकों में फ्लोरेट हाइड्रेट का प्रयोग होता है जिसके खाने से व्यक्ति मूर्च्छित तक हो सकता है। इनमें बेन्जोइक एसिड भी मिलाया जाता है, जो इतना जहरीला होता है कि उसके खाने से व्यक्ति की मृत्यु भी हो सकती है।
  • इनके अतिरिक्त ये दुर्गन्धनाशक रोमछिद्रों को बन्द कर पसीने को बहने नहीं देते। जो बैक्टीरिया प्राकृतिक रूप से बीमारियों से हमारी त्वचा की रक्षा करते हैं, ये उन्हें भी मार देते हैं। हमारी त्वचा द्वारा सोखे जाने पर यह रक्त में मिलकर उसे भी दूषित कर देते हैं।
  • इस प्रकार पाउडर व दुर्गन्धनाशक बजाए हमारी त्वचा व स्वास्थ्य-रक्षा के उन्हें हानि ही पहुँचाते हैं। इसलिए स्वाभाविक रूप से आने वाले पसीने को रोकना नहीं चाहिए ताकि हम इससे होने वाली हानियों से बचे रहें। इसके लिए हम कुछ उपाय कर सकते हैं, जैसे- नींबू-पानी, संतरे अथवा दूसरे फलों का रस या फिर खाली पानी ही का उपयोग थोड़ी-थोड़ी देर बाद करते रहें।
  • अधिक गर्मी व धूप में ज्यादा देर तक काम नहीं करें बल्कि बीच-बीच में छाया में आराम करते रहें।
  • यदि धूप व लू में जाना हो, तो कुछ खाकर व पानी पीकर ही निकलें ।
  • पसीने की चिपचिपाहट व बदबू से छुटकारा पाने के लिए पसीना निरोधक एवं दुर्गन्धनाशक पदार्थों का सहारा लेने के बजाए पसीने को पोंछते रहना व शरीर के विभिन्न अंगों को धोते रहना चाहिए।

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