आजकल बीमारियां काफी बढ़ रही हैं, उनमें चर्मरोग भी एक है। मानसिक उद्वेग, तनावपूर्ण जीवन, क्रोध, ईष्र्या, द्वेष तथा निराशा भी इस रोग के कारण माने जाते हैं।
प्राकृतिक चिकित्सा के अनुसार, चर्म रोगों के होने के कई कारण हैं। जो इस प्रकार हैं-
चर्म रोगों का एक बड़ा कारण कब्ज है। इसे हम इस प्रकार ये समझ सकते हैं कि जब आंतें अपना काम ठीक ढंग से नहीं करती हैं। तो शरीर के अवांछित पदार्थ भी उतनी तेजी से बाहर नहीं निकल पाते, जितनी तेजी से कि उन्हें निकलना चाहिए। इससे रक्त में टॉक्सिन की मात्रा बढ़ जाती है और शरीर त्वचा की सहायता से स्वयं को ऐसे पदार्थों से मुक्त करने का प्रयास करने लगता है। इन्हीं प्रयासों को हम चर्म रोगों का नाम देते हैं।
चर्म रोगों से पीड़ित रोगियों की परीक्षा से यह स्पष्ट हो जाता है कि वर्षों तक अप्राकृतिक, अनुपयुक्त और अति आहार लेने, नियमित व्यायाम न करने, तनावपूर्ण दिनचर्या रखने, पूरा आराम न करने, चाय, काफी, जैसी उत्तेजक चीजों का प्रयोग करने तथा औषधियों का प्रयोग करने से उत्पन्न हुई विषाक्तता का ही परिणाम चर्म रोग है। सामान्यता ऐसा देखने में आता है कि चर्म रोग के साथ सिर पेचिश तथा कब्ज आदि भी होते हैं।
प्राकृतिक चिकित्सालयों में चर्म रोगों के प्रायः ऐसे रोगी आते हैं जो बरसों तक अन्य इलाज ले चुके होते हैं तथा अन्ततः निराश हो जाते हैं। उनको ऐसा लगता है उनका रोग अब जाने वाला नहीं। ऐसे रोगियों में दाद (Ringworm), खाज(Scabies), खुजली(Itching), मुहांसे(Acne) तथा सोरियासिस(Psoriasis) के रोगी अधिक होते हैं।
सूर्य किरण चिकित्सा विशेषज्ञ डा. द्वारकानाथ नारंग ने अपनी पुस्तक में लिखा है, “सभी चर्म रोगों में हरा पानी दिन में तीन बार और रात को सोते समय पीजिये। दाने-दाने निकल आएं या खाज सी चले तो नीला तेल लगाइए।''
कई बार ऐसा देखने में आता है कि चर्म रोग किसी औषधि द्वारा शरीर में दबा दिए जाने पर वह अधिक उग्रता से दमा, पाचन-तंत्र विकार तथा नेत्र रोगों के रूप में सामने आता है। ऐसी स्थिति में धैर्यपूर्वक प्राकृतिक चिकित्सा करने पर हम यथेष्ट लाभ ले सकते हैं।
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