चर्म रोगों की प्राकृतिक चिकित्सा - Naturopathy of skin diseases

आजकल बीमारियां काफी बढ़ रही हैं, उनमें चर्मरोग भी एक है। मानसिक उद्वेग, तनावपूर्ण जीवन, क्रोध, ईष्र्या, द्वेष तथा निराशा भी इस रोग के कारण माने जाते हैं।

चर्म रोग के प्रकार – Types Of Skin Diseases In Hindi

  • मुँहासे – Acne
  • मसा – Carbuncle
  • सोरायसिस – Psoriasis
  • आधार कोशिका कार्सिनोमा - Basal cell carcinoma
  • रोसैसिया – Rosacea
  • छाला – Blister
  • लेटेक्स एलर्जी - Latex allergy
  • खुजली – Eczema
  • सुर्य श्रृंगीयता - Actinic keratosis

चर्म रोग के शुरुआती लक्षण - Early Symptoms Of Skin Disease In Hindi

  • खुजली और जलन संवेदना - Itching And Burning Sensations
  • रूखी त्वचा - Dry Skin
  • आपकी त्वचा के नीचे दर्दनाक, लाल, और चिड़चिड़ा हुआ गांठ - Painful, Red, And Irritated Lump Under Your Skin
  • सूजन, दर्दनाक जोड़ों - Swollen, Painful Joints
  • ब्लैकहेड, व्हाइटहेड्स, मुंह, या दीप, दर्दनाक सिस्ट - Blackheads, Whiteheads, Pimples, Or Deep, Painful Cysts
  • त्वचा पर पानी, साफ, द्रव भरा क्षेत्र - Watery, Clear, Fluid-filled Area On The Skin
  • मसालेदार फूड्स, मादक पेय पदार्थ, सूरज की रोशनी, तनाव, और आंतों के बैक्टीरिया हेलिकोबैक्टर पिलोरी - Spicy Foods, Alcoholic Beverages, Sunlight, Stress, And The Intestinal Bacteria Helicobacter Pylori

चर्म रोग के कारण - Reason Of Skin Diseases In Hindi

प्राकृतिक चिकित्सा के अनुसार, चर्म रोगों के होने के कई कारण हैं। जो इस प्रकार हैं-

 

  • गलत, असंतुलित और अनियंत्रित भोजन।
  • अस्वास्थ्यप्रद और तनावपूर्ण रहन-सहन।
  • पुराना, औषधीय उपचार।

चर्म रोगों का एक बड़ा कारण कब्ज है। इसे हम इस प्रकार ये समझ सकते हैं कि जब आंतें अपना काम ठीक ढंग से नहीं करती हैं। तो शरीर के अवांछित पदार्थ भी उतनी तेजी से बाहर नहीं निकल पाते, जितनी तेजी से कि उन्हें निकलना चाहिए। इससे रक्त में टॉक्सिन की मात्रा बढ़ जाती है और शरीर त्वचा की सहायता से स्वयं को ऐसे पदार्थों से मुक्त करने का प्रयास करने लगता है। इन्हीं प्रयासों को हम चर्म रोगों का नाम देते हैं।

चर्म रोगों से पीड़ित रोगियों की परीक्षा से यह स्पष्ट हो जाता है कि वर्षों तक अप्राकृतिक, अनुपयुक्त और अति आहार लेने, नियमित व्यायाम न करने, तनावपूर्ण दिनचर्या रखने, पूरा आराम न करने, चाय, काफी, जैसी उत्तेजक चीजों का प्रयोग करने तथा औषधियों का प्रयोग करने से उत्पन्न हुई विषाक्तता का ही परिणाम चर्म रोग है। सामान्यता ऐसा देखने में आता है कि चर्म रोग के साथ सिर पेचिश तथा कब्ज आदि भी होते हैं।

चर्म रोग का प्रकृतिक उपचार - Nature Treatment Of Skin Diseases In Hindi

प्राकृतिक चिकित्सालयों में चर्म रोगों के प्रायः ऐसे रोगी आते हैं जो बरसों तक अन्य इलाज ले चुके होते हैं तथा अन्ततः निराश हो जाते हैं। उनको ऐसा लगता है उनका रोग अब जाने वाला नहीं। ऐसे रोगियों में दाद (Ringworm), खाज(Scabies), खुजली(Itching), मुहांसे(Acne) तथा सोरियासिस(Psoriasis) के रोगी अधिक होते हैं।

  • ऐसे रोगियों को प्राकृतिक उपचार से पर्याप्त लाभ मिलता है।
  • चर्म रोगों के लिए प्राकृतिक उपचारों में मिट्टी चिकित्सा महत्वपूर्ण है।
  • पेट पर मिट्टी की पट्टी तथा कब्ज न रहें, इसके लिए एनिमा का प्रयोग करते हैं।
  • दाद होने की स्थिति में उस स्थान पर मिट्टी का लेप करते हैं। यह लेप रोग की तीव्रता के अनुसार दिन में 2-3 बार भी किया जा सकता है।
  • नीम के पत्तों को उबालकर उस पानी से दाद वाले स्थान को दिन में कई बार धोना चाहिए। दाद वाले स्थान को खुला रखकर उस पर धूप भी दिखानी चाहिए।
  • कई बार चर्म रोग पूरे शरीर में फैल जाता है। ऐसे रोगियों को सर्वाग मिट्टी का लेप दिया जाता है जिससे काफी लाभ मिलता है। रोगी के सिर से पैर तक पूरे शरीर में मिट्टी लगा देते हैं। पौन घंटे बाद सुख जाने पर पानी की धार से नहला देते हैं। त्वचा की उत्तेजना एवं खुजली इससे काफी शान्त हो जाती है।
  • चर्म रोगों के लिए प्राकृतिक चिकित्सा का एक महत्त्वपूर्ण उपचार चादर स्नान है। गांधीजी ने अपनी पुस्तक ‘आरोग्य की कुंजी' में लिखा है, “शरीर में घमौरी(Ghumori) निकली हुई हो, पित्ती (Hives) निकली हो, आमवातू (Rheumatic) निकला हो, बहुत खुजली(Itching) आती हो, खसरा(Measles) या चेचक(Chicken pox) निकली हो तो भी यह चादर स्नान काम देता है।''
  • चर्म रोगों में सूर्य किरण चिकित्सा भी काफी लाभ पहुंचाती है।

    सूर्य किरण चिकित्सा विशेषज्ञ डा. द्वारकानाथ नारंग ने अपनी पुस्तक में लिखा है, “सभी चर्म रोगों में हरा पानी दिन में तीन बार और रात को सोते समय पीजिये। दाने-दाने निकल आएं या खाज सी चले तो नीला तेल लगाइए।''

  • इन सभी उपचारों के साथ-साथ रोगी के भोजन का भी विशेष ध्यान रखना चाहिए। रोगी के लिए फलाहार, रसाहार एवं अंकुरित अन्न उत्तम खाद्य है।
  • सप्ताह में एक दिन साधारण उपवास भी करना चाहिए। पेट साफ रहे, इसके लिए आवश्यकतानुसार एनिमा का प्रयोग करना चाहिए। सवेरे खुली हवा में टहलना, व्यायाम, योगासन तथा सूर्य नमस्कार का अभ्यास भी लाभप्रद है।
  • रोगी का भोजन बिल्कुल सात्विक हो। भोजन में मिर्च, मसाले, नमक, चीनी, चाय, काफी, चावल तथा खटाई का प्रयोग नहीं करना चाहिए। साथ ही अचार, चटनी, ठंडे पेय, बिस्कुट तथा आइसक्रीम का प्रयोग भी प्रतिबंधित रहना चाहिए।
  • रोग की उग्रता को देखते हुए रोगी चिकित्सक की देखरेख में लम्बा उपवास भी कर सकता है। उपवास के दिनों में उसे खूब पानी पीना चाहिए तथा आवश्यकतानुसार एनिमा लेते रहना चाहिए।
  • चर्म रोग से पूर्णतया मुक्त होने के लिए धूप और वायु का सेवन अति आवश्यक है।
  • मिट्टी का प्रयोग करते समय सावधानी बरतनी चाहिए। मिट्टी साफ-सुथरी और चिकनी हो, इसका विशेष ध्यान रहे। गंदे स्थान की मिट्टी रोग को बढ़ा सकती है।
  • अच्छा हो यदि हम इस मिट्टी को प्रयोग में लाने से पूर्व धूप में अच्छी तरह सुखा लें। किसी चिकित्सक की सलाह से ही इन सब उपचारों को प्रयोग में लाना चाहिए।

कई बार ऐसा देखने में आता है कि चर्म रोग किसी औषधि द्वारा शरीर में दबा दिए जाने पर वह अधिक उग्रता से दमा, पाचन-तंत्र विकार तथा नेत्र रोगों के रूप में सामने आता है। ऐसी स्थिति में धैर्यपूर्वक प्राकृतिक चिकित्सा करने पर हम यथेष्ट लाभ ले सकते हैं।

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