रक्त-पित्त क्या है | रक्त-पित्त के प्रकार,लक्षण, और घरेलु चिकित्सा

जिस रोग में शरीर के ऊपर के भाग से या नीचे के भाग से खून बहता हो उसे रक्तपित्त कहते हैं।

रक्त-पित्त मार्ग भेद से तीन प्रकार के होते है:

1। उर्ध्व भाग से - मुख, कान, नाक, एवं आंख इन सात जगहों में से किसी स्थान से निकलने वाले रक्त को उर्ध्व रक्तपित्त कहते हैं।

2। अधोगमार्ग से - गुदा या मूत्र छिद्र (योनि या, शिश्न) इन दोनों जगहों से निकलने वाले रक्त को पित्त अधोग रक्तपित्त कहते हैं।

3। जब दोनों तरफ ऊपर तथा नीचे से रक्त बहता है तब उसे उभयज कहते हैं।

रक्त-पित्त के लक्षण

शरीर के ऊपर या नीचे के भाग से निकलने वाले खून से, शिथिलता, कास, श्वास, बुखार, भूख न लगना, अपचन, उल्टी, प्यास, जलन, नाड़ी की दुर्बलता, बार-बार मल त्याग, पीलिया और मूच्र्छा, चक्कर आना आदि रक्तपित्त के लक्षण हैं।

रक्त-पित्त में चिकित्सा

  • रक्तपित्त कुलकंडन रस 120 मि.ग्राम दूर्वा रस या मधु के साथ दो-तीन बार दें।
  • बोलपर्पटी 240 मि.ग्राम दिन में दो-तीन बार शहद के साथ दें।
  • स्वर्णगैरिक 240 मि.ग्राम शतमूल्यादि लौह 240 मि.ग्राम शहद से साथ दो-तीन बार दें।
  • लाख का चूर्ण 3 ग्राम दिन में तीन बार (उर्ध्व रक्तपित्त में) दें।
  • मोचरस 3 ग्राम दिन में तीन बार (अधोग रक्तपित्त में) दें।
  • उशीरासव 20 मि.लि. भोजन के बाद समभाग जल मिलाकर दो बार दें।
  • कुष्मांड अवलेह 10 ग्राम गो दुग्ध के साथ दो बार दें।
  • लाक्षा तेल मालिश के लिए प्रयोग करें।
  • एलादि वटी चार–छ: बार चूसने के लिए दें।
  • नाक से खून निकलने पर-गाय के दूध में या अनार के फलों के रस में थोड़ी शर्करा मिलाकर नाक में डालने से या ईख का रस, प्याज या आम की गुठली का रस, दूर्वारस अथवा लाक्षा रस को नाक में डालने से लाभ होता है आंवले को कांजी में पीसकर घी में छौंक कर मस्तक पर लेप करने से फौरन लाभ होता है।

    इनके साथ खाने की औषधि देते रहना चाहिए।

  • उध्वर्ग रक्तपित्त में - सुगंधबाला व नील कमल से सिद्ध बकरी का दूध, गाय या घोड़ी के पुरीष का स्वरस, वासा स्वरस, लाक्षाचूर्ण, वासाखंड विशेष लाभकारी होते हैं।
  • अधोग रक्तपित्त में - तृण पंचमूल, शतावरी व गोखरू से सिद्ध बकरी का दुध लिंग व योनि के रक्तपित्त में श्वेत पर्पटी, मोचरस चूर्ण, चंद्रकला रस तथा मोचरस सिद्ध बकरी का दूध, रक्तपित्त में लाभकारी होता है। चंदनादिचूर्ण, उशीरादि चूर्ण आदि के प्रयोग से विशेष लाभ होता है। रक्तपित्त कुलकडन रस सभी प्रकारों में उत्तम काम करता हैं।
  • रक्तपित्तांतक लौह, सुधानीधि रस, समशर्करा लौह, रक्तपित्तांतक रस, वासारिष्ट आदि का यथावसर प्रयोग सभी प्रकारों में हितावह है। ​

लाभ - पुराने गेहूं, जौ, चावल, मूग, मसूर, चना, धान की खीलें, परवल, साबुदाना, लौकी, तोरी, चोलाई, प्याज, आदि अनार, मौसमी, आंवला, संतरा, अंगूर, किशमिश, मक्खन, मिश्री गाय का या बकरी का दूध पथ्य है। शीतल जल से स्नान शीतल मंद सुगंधित हवा, चांदनी रात में नौका विहार आदि लाभकारी है।

नुकसान - अम्ल कटु, गर्म, तीक्ष्ण पदार्थ, लहसुन, राई, सरसों, मछली, तिल, उड़द, क्रोध, धूप, मैथुन, धुम्रपान आदि हानिकारक हैं।

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