शिशु के लिए एक वर्ष की आयु काफी उत्तेजनात्मक होती है। इस आयु में शिशु घर-परिवार वालों से परिचित होता है। घुटनों से चलना सीखकर, खड़े होकर चलने लगता है। इस आयु में शिशु में अनेक परिवर्तन होते हैं। शिशु यह अनुभव करता है कि उसे जीवन-भर एक छोटी गुड़िया ही नहीं बने रहना। वह एक ऐसी स्थिति से गुजरता है, जिसे मनोवैज्ञानिक नकारात्मक प्रवृत्ति' कहते हैं।
वह शब्दों या हरकतों से आनाकानी करता रहता है, लेकिन इसमें चिंतित होने की कोई आवश्यकता नहीं, क्योंकि यदि वह कभी भी नहीं कहने के वातावरण में से नहीं गुजरे, तो आगे चलकर आदमी न रह कर मशीन बन जाएगा और दूसरे लोग उस पर हावी हो जाएंगे। इस आयु में शिशु जिज्ञासु होता है।
वह दुनिया की हर चीज को उलट-पलट कर देखना चाहता है। इधर-उधर सब जगह अपने हाथ-पैर चलाता रहता है। मां परेशान हो जाती है और उसे यह सिरदर्द से कम नहीं लगता, पर वह सभी चीजों में हाथ डालता है, यह इस बात का द्योतक है कि शिशु का मस्तिष्क और उसकी भावनाएं विकासोन्मुख हैं।
एक साल की उम्र खतरनाक उम्र है। शिशु को खतरे से बचाने के लिए यदि माता-पिता बहुत अधिक सतर्क रहेंगे, हर वक्त शिशु का ध्यान रखेंगे, तो इससे शिशु मां-बाप से चिपटा ही नहीं रहेगा, डरपोक भी हो जाएगा। आवश्यकता यह बात समझाने की है कि खतरे कहां हैं।
नोट:- यही वह समय है, जब जहरीली चीजों को भी शिशु से दूर रखा जाना चाहिए। जहरीली वस्तुओं की सूची इस प्रकार है :
एक सप्ताह का शिशु कई सप्ताहों तक एक ही चीज की ओर आकर्षित बना रह सकता है। जैसे टेलीफोन, हवाई जहाज या बिजली की रोशनी आदि। जो चीजें खतरनाक न हों, उन्हें छूकर शिशु को जानकार हो जाने दीजिए। उसके चौकन्नेपन को बढ़ाते रहने की बजाय कोई और चीज देकर उसका ध्यान बंटाना बहुत अच्छा है। वैसे भी एक साल के शिशु के नजदीक ऐसी चीजें तब तक न रखें, जब तक कि वह उनसे अच्छी तरह से परिचित न हो जाए।
कई बार एक और दो साल की उम्र में बच्चा नहाने से भय खाता है। यह डर पानी के अंदर गोता खा जाने या आंखों में साबुन चले जाने के कारण होता है। बच्चों को नहाने के लिए चौड़ी परात या टब काम में लें और बहुत सावधानी से बच्चे को साबुन मले।
सुनने में यह बात अवश्य अजीब लगेगी, किंतु एक साल के शिशु में एक ही समय में आजादी और मां पर अधिक हावी रहने की प्रवृत्ति पनपती है। एक ओर तो वह अपनी मनचाही करना चाहता है। नई-नई जगह ढूंढ़ने लगता है, अजनबी लोगों और चीजों से जान-पहचान बढाने लगता है, दूसरी ओर वह मां पर अधिक निर्भर रहता है।
यह इसीलिए कि वह धीर-धीरे आत्मनर्भिर होना शुरू करता है। जो माताएं बच्चे में आत्मनिर्भरता पैदा करने के लिए उसे कमरे में लंबे समय तक रखकर इस बात की शिक्षा देना चाहती हैं, वे अपने उद्देश्य में असफल ही होती हैं। यह भावना आजादी और सुरक्षा की भावना पैदा होने के बाद ही आती है।
यदि शिशु ने चलना सीख लिया है, तो वह समय आ गया है कि जब भी उसे बाहर घुमाने ले जाया जाए, तो उसे गोदी या शिशु-गाड़ी के बाहर ही रखा जाए। स्वस्थ शिशु को गाड़ी के सहारे चलाते रहने या उसमें बिठाए रहने से वह और तकलीफों से तो अवश्य बच जाएगा, परंतु इससे उसके शारीरिक विकास में बाधा ही पहुंचेगी। कोई-कोई बच्चा डेढ़ साल तक पालने में खुशी-खुशी रहता है। उसकी इस आदत को प्रोत्साहन न दें। जैसे ही वह पालने से बाहर रहने की इच्छा प्रकट करे, आप उसे बिना हिचक बाहर निकाल दें। पालने से इस तरह की उकताहट एकाएक न होकर धीरे-धीरे होती है।
उस उम्र में शिशु की प्रवृत्ति बाहरी लोगों के पास जाते ही मुंह बिगाड़ने या डरने की होती है। यह आदत तब तक दूर नहीं होती, जब तक वह उन्हें एक या दो बार और न देख ले। अपने शिशु में बाहरी लोगों से मिलने-जुलने की आदत डालने की कोशिश करें। यदि वह तीन साल की उम्र तक दूसरे बच्चों के संपर्क में नहीं आ पाएगा, तो बाद में उसे उन लोगों के साथ खेलने व उनके साथ खाना सीखने में कई महीने लग जाएंगे।
मां के लिए यह बहुत बड़ा प्रश्न है कि तोड़-फोड़ करने वाले शिशु से घर की चीजों को कैसे बचाया जाए। अगर मां समझदारी से काम ले, तो बच्चे की ध्यान बंटाने की प्रवृत्ति में बहुत सहायता प्राप्त कर सकती है। बच्चे का ध्यान बंटाने के अतिरिक्त वह जमीन पर रखी हुई चीजें, जल्दी टूटने वाले सामान या किताबें, अखबार, वगरह दूर हटा कर रख दें। रसोईघर में चीनी या शीशे के बर्तन ऊपर रख दे।
कटोरियां या ऐसे छोटे बर्तनों को बच्चे की पहुंच से दूर ही रखना अच्छा है। एक मां ने शिशु का ध्यान बंटाने के लिए एक दराज में कपड़े खिलौने आदि भर दिए। शिशु उसे ही अस्त-व्यस्त करने में मजा लेने लगा और मां परेशानी से बच गई।
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