नवजात शिशु को पहला स्नान कराने के विधि:

जितना सुगम शीर्षक लग रहा है, उतना आसान यह काम नहीं है। बस कपड़े उतारे। पानी के दो-चार मग डाले। थोड़ा बेबी सोप भी प्रयोग कर लिया। फिर पानी डाला, हो गया स्नान, कह देना भले ही सरल है। मगर नवजात शिशु को स्नान कराना तथा कुछ समय बाद तक ऐसा करना पेचीदा काम है। काम सरल हो या पेचीदा शिशु को स्नान कराना अनिवार्य तो है ही।

अतः इस अध्याय में नवजात शिशु को स्नान कराने की विधि और सावधानियों पर प्रकाश डालते हैं

नवजात शिशु को पहला स्नान कराने की विधि और सावधानियां:

1। कमरे का तापमान जहां स्नान कराना है, 70° F। हो।

2। पानी का तापमान 100° F। हो, ऐसी सलाह दी जाती है।

3। पहले नाल (नालू) काटा जाता है, फिर स्नान करवाया जाता है।

4। इसके बाद भी प्रतिदिन स्नान करवाना उचित माना गया है।

5। बच्चे का पहला स्नान टब में करवाया जाता है।

6। यदि नाल काटने से पूर्व टब में स्नान करवाया गया तो यह बहुत बड़ा खतरा पैदा कर सकता है। नाल को संक्रमण हो सकता है। इस संक्रमण का प्रभाव आंखों पर भी हो सकता है। यह भयानक स्थिति होगी। इसलिए पहले नाल काटा जाता है, फिर टब में सुरक्षित स्नान कराया जाता है।

7। बच्चा मां के पेट से निकला है। उसका पूरा शरीर बहुत कोमल होता है। उसे नहलाते समय अच्छी कंपनी का बेबी सोप प्रयोग में लाना चाहिए। कोमल चमड़ी पर धीरे-धीरे यह बेबी सोप लगाएं तथा स्नान कराएं।

8। बेबी जॉनसन सोप, पियर्स बेबी सोप, पामोलिव बेबी सोप, विनोलिया बेबी सोप...या ऐसा ही कोई अन्य अच्छी कंपनी का साबुन प्रयोग कर सकते हैं।

9। जो लोग नवजात शिशु के लिए साधारण साबुन प्रयोग करने से इसमें डाला क्षार, शिशु को काफी हानि पहुंचा सकता है। अतः बहुत अच्छी बेबी सोप ही प्रयोग में लाएं।

10। स्नान इस प्रकार कराएं कि शिशु के शरीर पर कहीं साबुन लगा न रहे।

11। जहां स्नान करवा रहे हैं, उस कमरे में रोशनी जरूर हो।

12। पानी डालने से पूर्व, नहलाने से पूर्व, शिशु के कोमल शरीर पर वैसलीन लगा दें, फिर नहलाएं।

13। नाल किसी भी अवस्था में भीगने न पाए।

14। नहलाते समय बड़े ही नरम तौलिए का प्रयोग करें। शरीर को रगड़े मत। थपथपा कर पोंछे, धीरे-धीरे और पूरी तरह सुखा दें।

15। बच्चे के शरीर को तौलिए से सुखाएं। देख लें कि नन्हें के शरीर के निम्न अंग पूरी तरह सूख चुके हैं या नहीं-

(1। बाजू, 2। बाजू के बाद बगल, 3। पेडू, 4। मलस्थान, 5। जंघाओं का भीतरी भाग, 6। नितंबों के बीच का स्थान, 7। कान, 8। गर्दन...मतलब हर अंग।)

16। शिशु का मुंह अंदर से भी साफ करना आवश्यक होता है। इसके लिए उंगली पर थोड़ी शोषक रुई लपेटें। इसे बोरिक लोशन में भिगोएं। इस उंगली से मुंह का भीतरी भाग साफ करें। अब उंगली पर बोरिक ग्लिसरीन लेकर मुन्ने के मुंह में लगाएं।

17। अब तक शिशु पूरी तरह नहाकर, साफ हो चुका है तथा मुंह के अंदर का भाग भी साफ कर लिया है। अब आप उसके कान को सामने तथा अंदर से भी साफ करें, मगर बड़े ध्यान से। कान के भीतर के रन्ध्र या विवर को स्वच्छ करने के लिए एक बड़े ही साफ, मुलायम कपड़े के कोने को बाटें। इसकी तीली-सी बना लें। इस बाटे हुए कपड़े की नोक को विवर के अंदर प्रवेश करें।

इसे बहुत धीरे घुमाएं। विवर के अंदर जो कुछ होगा वह निकल आएगा। इस कार्य के लिए वस्त्र ज्यादा ठीक है, रुई नहीं। रुई का कुछ भाग कभी-कभार कान के अंदर छूट जाता है, अतः इस काम के लिए रुई का प्रयोग न करें। मुंह के अंदर तथा कान के अंदर की सफाई हर कोई नहीं कर सकता। इसके लिए बड़ी समझ चाहिए। कहीं शिशु को कोई हानि न हो जाए।

18। वास्तव में नाक और गले के अंदर कुछ श्लेष्मा एकत्र रहता है। इसलिए शिशु के नाक को अंगूठे और उंगली के बीच दबाकर श्लेष्मा को बाहर निकाल फेंकें। यदि इसे न निकाला जाए, तो यह पीछे को जा सकता है। वायु मार्ग में पहुंच सकता है। इससे निमोनिया हो सकता है।

19। शिशु के मुंह के अंदर से श्लेष्मा भी निकाली जाती है, जिसके लिए 'कैथीटर’ मिलता है। इसे शिशु के मुंह में डालकर श्लेष्मा खींच लें।

20। शिशु के नेत्र भी इस समय साफ करने होते हैं। यह बड़े महत्त्व का काम है। यदि जरा-सी गलती कर देंगे, तो बच्चे की आंखों को नुकसान हो सकता है। अतः बड़े ध्यान से आंखों की सफाई करें।

21। मां के योनि मार्ग में एक रोग होता है, इसके कारण वहां स्राव बनने लगता है। इसी से ‘गेनोरिया' रोग हो जाता है। कुछ अन्य जीवाणु भी होते हैं, जो इस रोग को पैदा कर सकते हैं। योनि से हुआ स्राव शिशु के नेत्रों में पहुंच सकता है। वहां यह शोथ पैदा कर देता है। इससे नेत्र गोलक के पारदर्शक भाग (जिसके द्वारा हम देखते हैं), पर व्रण बन जाते हैं। ऐसा होने से आंखों का सूज जाना आम बात है। मान लो ऐसा हो जाए, तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें। ऐसी अवस्था में उपचार की आवश्यकता हो जाती है।

यदि आप ढील दिखाएंगे, तो आंखों की ज्योति जा सकती है। इतना ही नहीं, यह और भयंकर स्थिति पैदा कर सकते हैं। ये जीवाणु कभी-कभी इतने तेज और हानिकारक होते हैं कि नेत्र के अंदर पहुंच कर उसके अंदरूनी भागों में शोथ पैदा कर देते हैं। ये मस्तिष्क की ओर भी पहुंच जाते हैं। इससे शिशु की मृत्यु भी हो जाती है। अतः ऐसे सारे कार्य कोई अभ्यस्त, अनुभवी, प्रशिक्षित व्यक्ति करे तो अच्छा रहेगा।

22।

यदि उत्पन्न होने वाला शिशु लड़का न होकर लड़की है और जिसको नहलाने और साफ करने का कार्य कर रहे हैं, तब तो और भी अधिक सावधानी होनी चाहिए। भगोष्ठों को खोलकर, उनके बीच एकत्र हुई वस्तु को रुई के बोरिक लोशन में भीगे हुए फाहे से आगे से पीछे तथा ऊपर से नीचे की ओर को पोंछे। इसका लाभ यह होगा कि मल द्वार से निकला मल अंगों को गंदा नहीं कर सकेगा। यदि शिशु कन्या न होकर लड़का है, तब इस प्रकार की सफाई वाला कार्य नहीं होता।

23। शिशु पैदा होने के कुछ समय पश्चात् मल द्वार से हरे रंग वाला गाढ़ा-सा पदार्थ मल रूप में निकलता है। इस हरे गाढ़े पदार्थ में आन्त्र के अंदर की कला के कुछ सूक्ष्मांश तथा श्लेष्मा होते हैं। इस पदार्थ में कोई जीवाणु नहीं होते। मगर शिशु के उत्पन्न होने के चार-छः घंटों बाद इसमें जीवाणु हो जाते हैं। इस प्रकार शिशु को दो-ढाई दिनों तक अपने शरीर से, मल द्वार से, इस ‘मिकोनियम' को निकालता है। तब तक मल बनना भी शुरू हो जाता है।

यही गाढ़ा हरा पदार्थ मिकोनियम है तथा शिशु के शरीर से यह अवश्य निकलना ही चाहिए। यदि शिशु पैदा होने के ढाई-तीन घंटों बाद तक अपने मल द्वार से मिकोनियम न निकाले, तो मल द्वार को चैक करें। कहीं ऐसा तो नहीं कि यह बंद है। ऐसा होने पर मिकोनियम नीचे आने की बजाए ऊपर को रास्ता ढूंढ़कर छाती, मुंह की ओर चला जाएगा, जहां यह घातक भी सिद्ध हो सकता है।

अतः मल द्वार को खोला जाना जरूरी है। मल द्वार खोलने के लिए, अपने हाथ की सबसे छोटी उंगली पर तेल लगाएं। इस तेल लगी उंगली को धीरे से मलद्वार में डालें और निकाल दें। ऐसा करने से मल द्वार की रुकावट खत्म हो जाएगी, यह खुल जाएगा एवं यह कार्य भी बड़ी सावधानी से करें।

24। शिशु जन्म लेता है, तो मूत्र त्याग भी करता है। यह मूत्र त्याग भी कुछ ही घंटों में (कभी-कभी बहुत जल्दी कर देता है। इस बात का पक्का ध्यान रखें कि उसने मूत्र त्याग किया है या नहीं। आप अधिक से अधिक आठ-दस घंटे प्रतीक्षा कर सकते हैं। यदि तब तक भी शिशु ने मूत्र त्याग न किया हो, तो जरूर चिंता व चैक करने का विषय है। तब उसके पेट के निचले भाग में पेड़ के ऊपर देखें। वह स्थान कहीं ऊंचा-सा, उभरा-सा तो नहीं। यदि उभरा है, तब तो जरूर मूत्र एकत्र है, मगर निकल नहीं रहा।

मान लो यह स्थिति है कि मूत्र-त्याग भी नहीं हुआ तथा पेडू भी भरा-भरा लग रहा है, ऐसे में शिशु को गर्म पानी से टब बाथ कराएं तथा पेडू पर भी कुछ अतिरिक्त पानी डालें। टब में कुछ यों बिठाएं कि मूत्र के त्यागने को आप देख सकें। कुछ देर तक ऐसे ही रखें। दो-तीन घंटों बाद इस गर्म पानी के टब बाथ को दोहरा दें। यदि फिर भी शिशु मूत्र त्याग नहीं करता, तब तो यह चिंता का विषय है। आप शिशु को चिकित्सक को दिखाएं। मूत्र त्यागना जरूरी है। सरजन की सलाह लेने में अधिक विलंब भी न करें।

नोट:- 

1। बच्चा बहुत कमजोर हो तो।

2। बच्चा समय से पूर्व जनमा हो (प्रि-मैच्योर्ड हो)।

3। बच्चा रोग ग्रस्त हो।

इन अवस्थाओं में नवजात शिशु को स्नान कराने की सलाह नहीं दी जाती है।

(और पढ़े:- नवजात शिशु का पहला साल क्यों महत्वपूर्ण होता है)

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