जैसा कि इसके अंग्रेजी नाम से ही पता चलता है, यह एक विषैला पौधा है। संस्कृत में इसे 'कुपील', 'विष तिन्दुक', 'कारस्कर', 'रम्यफल', 'विषमुष्टि' आदि नामों से पुकारते हैं। इसके वृक्ष ऊँचे होते हैं। तना मोटा होता है और इसकी छाल मटमैले रंग की होती है।
इसके फल नारंगी की भांति गोल होते हैं और बड़े सुंदर लगते हैं। इसीलिए इसे 'रम्यफल' भी कहते हैं। फल के भीतर से सफेद रंग का गुदा निकलता है, जिसमें बीज रहता है। बीज चपटा और गोल होता है। भारत में यह जंगलों और पर्वतों पर पाया जाता है।
कुचला की तासीर ठंडी होती है। स्वाद में यह कड़वा होता है। यह वात, पीड़ा, कफ, पित्त, रक्त-विकार नाशक होता है। इसके सेवन से नशा चढ़ता है जो आदमी को पागल तक बना सकता है। पक्षाघात, अनिद्रा, मंदाग्नि, पेट विकार, आँव, बवासीर, आतशक आदि में इससे कारगर औषधि तैयार की जाती है। पेट के कीड़ों को यह नष्ट कर डालता है।
कुचला की जड़ की छाल को पीसकर उसमें नींबू निचोड़ दें और उसकी छोटी-छोटी गोलियाँ बनाकर रख लें। प्लेग जैसे असाध्य रोग में इसकी एक-एक गोली सुबह-शाम रोगी को देने से बड़ा लाभ होता है।
कुचला की छाल को थोडे-से देसी घी में पीसकर रख ले। प्रतिदिन सुबह के समय इसकी 2 ग्राम मात्रा चाट लें। इससे खाँसी, गले की खराश और साँस की तकलीफ दूर हो जाती है।
मंदाग्नि', ‘अजीर्ण', 'पेट के कीड़े, वातविकार आदि के लिए शुद्ध कुचला, शुद्ध हीरा हींग, शुद्ध गंधक, सेंधा नामक, हैड (छोटी), पीपल, काली मिर्च और सोंठ, इनको समभाग में लेकर कूट-पीस लें और छान लें। फिर इसका प्रयोग करे। जल्द आराम मिलेगा।
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