यदि आपका शिशु सरकरने लगा है, तो कुछ ज्यादा ध्यान रखना पड़ेगा। उसकी टांग, घुटना, पांव, कुछ भी छिलने न पाए। किसी सख्त चीज के संपर्क में आकर या सख्त जमीन के कारण ऐसा संभव है। अतः उसकी टांगों पर कोई नर्म, मुलायम-सी पाजामी वगैरह हो। उसको मोजे पहनाएं। मतलब यह कि ऐसा पक्का प्रबंध करें कि सारे हाथ, पांव सुरक्षित रहें। उनमें खरोंच न लगे। पांव तथा टांगों को ढके रखना ही बचाव होगा।
एक वर्ष के बच्चे को लंबे मोजे, जांघिया या मुलायम हलका पाजामा पहनाकर उसे रगड़ आदि से बचाते रहें। वह अब अपनी टांगों पर खड़ा होना भी सीख जाता है।
जब बच्चा दो वर्ष की आयु का हो जाए, तो उसे पाजामा, पैंट, सलैक्स वगैरह पहनाना शुरू करें। साथ में आरामदेह मोजे भी। अब वह चलना सीख चुका होता है। यह शारीरिक बनाव पर तो जरूर निर्भर करता है कि बच्चा कब चलना सीख सकता है। फिर भी यह समय एक वर्ष के पश्चात् कभी भी आ सकता है। चलेगा, गिरेगा भी। ऐसे में टांगें सदा ढकी रहेंगी, तो सुरक्षित रहेंगी।
बच्चा जब भी उठने, चलने का प्रयत्न करे, उसे उत्साहित करें। सहारा देकर चलाएं, इसके लिए रेहड़ा या वाकर आदि उपलब्ध होते हैं। उनका प्रयोग कर बच्चे में चलने का शौक पैदा करें। इससे वह अधिक तेजी से विकसित होगा।
शिशु को जब भी जांघिया, पाजामा, पैंट पहनाएं, यह पेट पर बांधने वाली न हों तो ठीक। ऐसे पहनावे पेट को दबाते हैं। इसका उदर पर बुरा प्रभाव पड़ता है। यदि आप बच्चे के पेट की सोचकर इन्हें ढीले रखेंगे, तो ये टिकेंगे नहीं। ये नीचे खिसकने लगेंगे, उतर कर पांवों में फंसेंगे। इससे बच्चा गिर सकता है।
पाजामे वगैरह में यदि फीते लगे होंगे, जो पीछे से, कमर से, कंधों पर होते हुए सामने की ओर आ सकें। यहां ये नेफे या बेल्ट वाले स्थान तक पहुंचे। यहां बटन लगे हों। फीतों में काज हों। फीते इन दो बटनों में पकड़े जाएंगे। अब न तो यह पेट पर दबाव पड़ेगा और न ही पाजामा, पैंट नीचे गिरेंगे। बाजार में भी इसी प्रकार के पाजामे, पैंटें, जांघिए उपलब्ध रहते हैं। इन्हें ही पहनाने का रिवाज है, क्योंकि ये हर प्रकार से सुरक्षित तथा आरामदेह होते हैं।
जांघिए के लिए एक और तरीका उपलब्ध रहता है। इसके ऊपरी किनारे पर छेद (काज) करके झबले के निचले किनारे पर लगे हुए बटनों में पकड़ बना देते हैं। इस प्रकार नन्हें का जांघिया गिरता नहीं। उसे कोई कठिनाई नहीं होती।
1। शिशु के वस्त्र ढीले हों। तन-बदन को कसकर न रखें। उसके शरीर में फंसे-फंसे से न हों। शिशु अपना हाथ, पांव, शरीर का प्रत्येक अंग जैसे मरजी चला ले। उसे कोई रुकावट या कठिनाई न आए।
2। बच्चे की छाती, उदर दबाव में न रहे। किसी कसाव को महसूस न करे।
3। जब बच्चा भागने और खेलने योग्य हो, तो उसके कपड़े उसके लिए रुकावट न बनें। ये वस्त्र पहनकर बच्चे के खेलने में कोई अड़चन न आए।
4। यदि वह इन वस्त्रों को पहनकर योगासन करता है, या व्यायाम करता है, या मैदान में किसी खेल में भाग लेता है, तो उसे कोई कठिनाई न आए।
5। मौसम के अनुरूप कपड़े हों, यह बहुत जरूरी बात है। बच्चे को ठंड न लगे । बच्चा अधिक गर्मी महसूस न करे। अतः गर्मी, सर्दी का ध्यान रख कपड़े चुनें। ये फैशन की मांग बेशक पूरी करें, पर शरीर के तापमान के लिए भी उपयुक्त रहें।
6। वस्त्र बहुत न हों। वस्त्र बड़े मोटे न हों। वस्त्र भारी न हों। ये मुलायम हों। कम हों। जितने गर्म चाहिए, उतने गर्म भी हों। फलालैन, ऊनी, सूती, रेशमी...मौके के अनुसार चुनें तभी अच्छे भी लगेंगे।
7। बच्चों के पांव बहुत बड़े हों, तो बुरा लगता हैं। वे बड़े इसलिए भी होंगे, जो हम इन्हें सदा खुला रखेंगे। जूते नहीं पहनाएंगे। पहले तो हम कहते रहे हैं कि मोजे तथा जूते शिशुओं के खुले होने चाहिए। पांव पर दबाव न पड़े। मगर जैसे-जैसे आयु बढ़ने लगे, ठीक साइज के जूते पहनें, जो पांव के नाप के ही हों। बहुत खुले नहीं। पांव को जितना खुला जूता मिलेगा, पांव उसी तेजी के साथ बढ़ता रहेगा।
बहुत बड़ा पांव हो जाना अच्छी नहीं मानी जाती। जैसी आयु, जैसा बड़ा शरीर, जितनी अच्छी सेहत, उसी के अनुरूप हो आपके बेटे या बेटी का पांव, तभी अच्छा है।
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