पीलिया से बचाव
महामारी के रूप में महानगरीय गली-मोहल्लों और कस्बाई इलाकों में समय-समय पर प्रकट होता पीलिया न तो हल्दी और पानी से उतरने वाला रोग है, न ही देवी-देवताओं के प्रकोप से जन्य विकार । वह तो एक छुतहा रोग है, जो दुषित पेय जल, दुध या खानपान की चीजों से फैलता है। उससे बचे रहने के क्या उपाय हैं और इलाज के क्या रास्ते हैं, इसके बारे में हम बतायेंगे।
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पीलिया कोई रोग नहीं एक लक्षण है। इसका संबंध शरीर में पाए जाने वाले एक रसायन बिलिरुबिन से है। यह रसायन लाल रक्त कणिकाओं के टूटने से बनता है और जिगर के द्वारा पित्त के अंश के रूप में आंतों में छोड़ दिया जाता है। इस प्रक्रिया के द्वारा शरीर में वह एक नियमित मात्रा में बना रहता है। पर शरीर के कई तरह के विकारों में उसकी मात्रा असामान्य रूप से बढ़ जाती है। तब आंखों और त्वचा का रंग पीला हो जाता है। इसी से इसे पीलिया या जोंडिस कहते हैं।
जिगर, पित्त की थैली और पित्त-नलियों के बहुत से रोग और ऐसे विकार जिनमें एक साथ बड़ी तादाद में लाल रक्त कणिकाएं टूट जाती हैं, पीलिया पैदा कर सकते हैं।
पर पीलिया का सबसे प्रमुख कारण जिगर की सूजन पैदा करने वाला छुतहा रोग हैपेटाइटिस है। यह इतना आम है कि पीलिया इसका पर्याय ही हो गया है। यह रोग वायरस रोगाणुओं से होता है।
- हैपेटाइटिस-ए में रोग की शुरुआत सर दर्द, बेचैनी, आलस्य और थकावट से होती है।
- भूख मर जाती है।
- धूम्रपान करते रहे व्यक्ति पाते हैं कि उन्हें अचानक धूम्रपान के प्रति अनिच्छा हो जाती है।
- बुखार हो जाता है।
- मितली-कै की शिकायत होने लगती है।
- जिगर में सूजन हो जाने के कारण पेट के दाहिने ऊपरी हिस्से में दर्द महसूस हो सकता है। तभी आंखों और चमड़ी पर पीलापन दिखने लगता है।
- मूत्र का रंग संतरी, गहरा पीला या भूरा और पखाने का रंग सफेद हो जाता है।
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इसके बाद रोग प्रकोप शांत होता जाता है। मितली-कै की शिकायत दूर हो जाती है। भूख धीरे-धीरे लौट आती है। तीन से छह हफ्तों के भीतर जिगर की सुजन भी उतर आती है। लेकिन इसके बाद भी रोगी एक से तीन महीने तक खुद को काफी कमजोर महसूस करता रहता है।
हैपेटाइटिस-बी के लक्षण भी लगभग इसी तरह के होते हैं। पर उसमें जोड़ों में दर्द की तकलीफ आम होती है। बदन पर दाने भी निकल सकते हैं। यह रोग हैपेटाइटिस-ए से अधिक गंभीर है।
हैपेटाइटिस स्वतः दूर हो जाने वाला रोग है। उसका उपचार सरल है।
- स्वास्थ्य लाभ करने के लिए यह आवश्यक है कि रोगी पूरा-पूरा आराम करे।
- पीलिया ठीक हो जाने के तीन महीने बाद तक वह अपने ऊपर कामकाज का ज्यादा बोझ न रखे।
- खानपान के प्रति ध्यान रखे।
- गन्ने और संतरे का रस, पपीता और दूसरे फल उसके लिए सुपाच्य और उपयोग हैं।
- उबली, मसली हुई फलियां और दालों से वह प्रोटीन ग्रहण कर सकता है।
- चर्बी और चिकनाई वाले पदार्थ पर पाबंदी रखना जरूरी है।
- मदिरा इसके लिए जहर से कम नहीं ।
- स्वस्थ होने के बाद भी कम से कम छह माह तक उसे इसका परहेज रखना चाहिए।
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उपचार में दवाओं की खास अहमियत नही है। विटामिन उपयोगी हो सकते हैं। पर इसके सिवाय प्रायः कोई दवा काम नहीं आती। जिन मरीजों को कुछ न पच रहा हो, उन्हें नस द्वारा ग्लुकोस चढ़ाना जरूरी हो सकता है।
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हैपेटाइटिस-ए से बचाव: हैपेटाइटिस-ए से बचाव के लिए स्वच्छता पर ध्यान देना जरूरी है। स्वच्छ पेय जल की व्यवस्था, बेहतर सीवेज प्रणाली और खानपान की चीजें बेचने वालों पर सफाई कायम रखने की बंदिश इसके लिए महत्वपूर्ण हैं। व्यक्तिगत स्तर पर जरूरी है कि जिन दिनों हैपेटाइटिस फैला हो, कम से कम उन दिनों पानी उबाल कर पीते रहें। बाहर खाएं-पीएं नहीं। घर में किसी को हैपेटाइटिस हो जाए, तो उसकी देखभाल कर रहे व्यक्ति के लिए यह जरूरी हो जाता है कि जब-जब वह उसके संपर्क में आए, उसके बाद वह साबुन से अपने हाथ अवश्य धो ले।
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हैपेटाइटिस-बी से बचाव: इसकी रोकथाम के टीके अब हमारे देश में भी उपलब्ध हो गए हैं। यह टीका लगवा लेने पर इसके होने का डर नहीं रहता। यों भी बचाव मुश्किल नहीं-सिर्फ यह है ध्यान रखें कि जब कभी सुई लगवाने की जरूरत पड़े, सुई उबली हुई हो या एक बार इस्तेमाल करके फेंक देने वाली हो। खून की जरूरत हो, तो किसी अधिकृत ब्लड बैंक से रक्त प्राप्त करें।
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