चक्कर आने के कारण, लक्षण और इलाज़

चक्कर आने का मुख्य कारण शरीर का संतुलन बिगड़ना होता है। आधुनिक युग में हुई खोजों ने यह सिद्ध कर दिया है कि शारीरिक सन्तुलन का कार्य विभिन्न शारीरिक एवं मस्तिष्कीय क्रियाओं द्वारा सम्पन्न होता है। इन क्रियाओं में निम्नलिखित अंगों के कार्य काफी महत्वपूर्ण समझे जाते हैं।

1। त्वचा, मांस-पेशियां एवं जोड़ों द्वारा कुछ विशिष्ट संवेदनायें मस्तिष्क में पहुंचती रहती हैं, जिनके आदेशानुसार मस्तिष्क आपका शारीरिक सन्तुलन बनाये रखता है।

2। शरीर को सन्तुलित रखने वाला एक विशेष यंत्र कान के अन्दर होता है, जिसका शारीरिक सन्तुलन में सबसे बड़ा हाथ समझा जाता है। इसीलिए प्रायः ऐसा देखा जाता है कि कान की बीमारियों से पीड़ित व्यक्ति को बहुधा चक्करों को बीमारी हुआ करती है।

3। इसी प्रकार आंख एवं निगाह का भी शारीरिक सन्तुलन में महत्त्वपूर्ण भाग होता है।

चक्कर आने के कारण

शारीरिक सन्तुलनकारी क्रियाओं में बाधा पड़ने पर ही चक्करों का जन्म होता है। आंख अथवा कान की बीमारियों का इनमें सर्वप्रमुख हाथ होता है। ऐसा देखा गया है कि गूंगे-बहरे लोगों में शारीरिक सन्तुलन करने वाले यंत्र का अभाव होता है। फिर भी वे इस बीमारी से पीड़ित नहीं होते। कहा जाता है कि इन लोगों में शारीरिक सन्तुलन का मुख्य कार्य त्वचा द्वारा सम्पन्न किया जाता है। अतः कानों का स्थान गौण हो जाता है।

जो लोग शरीर अथवा मन से कमजोर होते हैं, उन्हें चक्कर आने की बीमारी हो जाती है। इन रोगियों में मनोवैज्ञानिक कारण प्रधान होते हैं। इसी कारण ये रोगी किसी अप्रिय अथवा वीभत्स दृश्य को देखकर गश खाकर गिर पड़ते हैं। प्रायः रक्त की कमी के कारण भी चक्कर आते हैं।

हमारे देश में 60 प्रतिशत से अधिक महिलाएं ‘एनीमियां' (रक्ताल्पता) से पीड़ित बताई जाती हैं। इन सब में चक्कर आने की बीमारी पाई जाती है। जो रोगी हृदय रोग, वृक्क रोग, अथवा यकृत सम्बन्धी विकारों से पीड़ित होते हैं, उन्हें भी चक्कर आने आरम्भ हो जाते हैं। मधुमेह होने पर भी यह बीमारी हो सकती हैं कुछ ऐसी दवायें भी हो सकती हैं, जिनके सेवन से रोगी को चक्कर आ सकते हैं। सिर में चोट लग जाने पर अथवा तीव्र ज्वर होने पर चक्कर आने प्रारम्भ हो जाते है।

चक्कर आने के लक्षण

इन रोगों से पीड़ित व्यक्ति को जब चक्कर आते हैं तब उसकी बुद्धि भ्रमित उठती है आंखों के सामने अंधेरा छा जाता है एवं वह बेहोश होकर जमीन पर गिर सकता है। इन शिकायतों को मुख्य रूप से दो भागों में विभाजित किया जा सकता है।

  • चक्कर आने से पूर्व रोगी की बुद्धि-भ्रम हो जाती है। वह पास की वस्तु दूर अथवा दूर की वस्तु पास देख सकता है। अथवा उसे कई प्रकार के मिथ्या आकार दिखाई पड़ सकते हैं।
  • इस अवस्था के उपरान्त उसे चक्कर आने प्रारम्भ हो जाते हैं।
  • चक्कर आते समय कुछ रोगियों को ऐसा अनुभव होता है कि उसका सिर अथवा शरीर घूम रहा है।
  • दूसरी श्रेणी के रोगियों को ऐसा अनुभव होता है कि उनका शरीर तो स्थिर है, परन्तु आप-पास की सारी वस्तुयें चक्कर काट रही हैं।
  • चक्कर आने के पूर्व कुछ रोगियों का जी मिचलाता है, अथवा उल्टी हो जाती है।
  • कुछ लोगों की आंख की पुतली भी फिर जाती है।
  • जब ये चक्कर बढ़ जाते हैं तो रोगी बेहोश होकर चेतनाहीन अवस्था में गिर पड़ता है फिर उसे आस-पास का कुछ ध्यान नहीं रहता।

चक्कर आने पर इलाज

रोगी को पहले अपने रोग का कारण तलाश करना चाहिए। क्योंकि कारण पता चलने पर ही उसकी चिकित्सा की जा सकती है। यदि आपके कान खराब है। अथवा ‘टौन्सिल' की बीमारी है तो इलाज कीजिए। आपके चक्कर ठीक हो जायेंगे। शारीरिक दुर्बलता का कारण होने पर शक्तिवर्द्धक दवाओं के उपयोग से यह रोग दूर हो सकता है। कमजोरी को दूर करने वाली अन्य दवाओं के साथ-साथ 'कोरामीन' तथा 'वैरीटोल' नामक दवाओं को खिलाने से बहुत लाभ मिलता है।

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