ज्वर क्या है | ज्वर के लक्षण और चिकित्सा का उपाय

शरीर की उस अवस्था को ज्वर कहते हैं जिसमें शरीर का तापक्रम बढ़ जाता है। पसीना,मल, मूत्रा आदि की कमी हो जाती है तथा साधारणतया नाड़ी की गति भी सामान्य से अधिक बढ़ जाती है। मनुष्य शरीर का स्वाभाविक तापक्रम 97°- 99°F (36.2°-37.5°C) होता है। साधारणतया कक्षीय ताप (कांख) से 0.5°F अधिक मुख का ताप एवं इससे 0.5°-1°F अधिक गुदा का ताप होता है। शाम को एक डिग्री अधिक तथा प्रातःकाल एक डिग्री कम हो जाता है।

निद्रा की अवस्था में लगभग 1। 5°F देह का ताप कम हो जाता है। सामान्य अवस्था में 99°F से अधिक शरीर का तापक्रम बढ़ जाना ही ज्वर कहलाता है। शरीर में तापक्रम के बढ़ने एवं घटने की क्रियाएं बराबर होती रहती हैं। मस्तिष्क में एक तापक्रम नियंत्रक केंद्र होता है। तापक्रम के घटने व बढ़ने की क्रियाओं को वह कंट्रोल करता है जिससे शरीर का तापक्रम स्वस्थ अवस्था में एक समान बराबर बना रहता है।

ज्वर के लक्षण

जिस रोग में पसीने की रुकावट, शरीर में टूटने जैसी पीड़ा तथा संताप, एक साथ मिलें उसे ज्वर कहते हैं। संताप शब्द से शरीर के साथ मन एवं इंद्रियों के भी ताप का ग्रहण किया जाता है। केवल शरीर के ताप का बढ़ जाना ही ज्वर रोग नहीं है। मन का विचलित होना, किसी कार्य में मन न लगना तथा ग्लानि - ये मन के संताप के तथा इंद्रियों में विकार उत्पन्न होना, इंद्रिय संताप के लक्षण हैं।

बुखार में शरीर में भारीपन, जकड़ाहट, बिना किसी कार्य के किए थकावट महसूस करना, किसी काम में मन न लगना, मुख का बेस्वाद होना, आंखों में बार-बार पानी भर जाना, कभी छाया कभी धूप में बैठने की इच्छा करना, किसी चीज के खाने की इच्छा न करना, शरीर के रोमों का खड़े हो जाना, आंखों के आगे अंधेरा छा जाना, ठंड लगना आदि ज्वर के सामान्य पूर्व रूप हैं। अधिक जम्हाई का आना वातज ज्वर का, नेत्रों में जलन पित्तज ज्वर का तथा खाने की इच्छा न करना कफज ज्वर का मुख्य रूप है।

साधारणतया प्रारंभ काल में सात दिन तक ज्वर तरुण या नवज्वर कहलाता हैं। आठवें दिन से बारहवें दिन तक मध्यम ज्वर कहलाता है। उसके बाद ज्वर पुराना हो जाता है।

ज्वर में चिकित्सा

1। मृत्युंजयरस 125 मि.ग्राम दिन में 2 या 3 बार गर्म जल, मधु या तुलसी के स्वरस के साथ दें।

2। त्रिभुवन कीर्ति रस 125 मि.ग्राम दिन में 2-3 बार गर्म जल या मधु से दें।

3। संजीवनी वटी 1-2 गोली दिन में दो बार गर्म जल से दें।

4। सुदर्शनघन वटी दो गोली दिन में दो बार में उष्ण जल से दें।

5। देवदादि क्वाथ 5-10 मि.लि। समभाग गर्म जल मिलाकर दें।

6। सुदर्शन चूर्ण एक ग्राम एक मात्रा रात में गरम पानी से दें।

7। गोदंती भस्म तथा गुडुची सत्व के 125-250 मि.ग्रा। शहद या गर्म जल के अनुपान में दो-तीन बार लेने से ज्वर में कमी आ जाती है।

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