बरगद को संस्कृत में ‘वट वृक्ष', 'न्यग्रोध', 'जगृलः', 'विटपी', 'बहुपाद आदि नामों से जाना जाता है। बरगद की उम्र उसके नाम और आकार के अनुसार बरगद होती है। सौ वर्ष से भी ऊपर इसकी उम्र होती है और आकार में यह विशाल होता है। इस वृक्ष की शाखाएँ चारों ओर फैलती रहती हैं। इसकी अनेकों जटाएँ चारों ओर नीचे लटककर धरती में प्रवेश कर जाती हैं और पेड़ का आधार बन जाती हैं। इसका तना मोटा होता है और भूरे रंग का होता है। इसके पत्ते बरगद और मोटे होते हैं और उन्हें शाखा से तोड़ने पर उनकी जड़ से दूध निकलता है।
इसके फल छोटे और गोलाकार मखाने की तरह के होते हैं। यह वृक्ष 30-40 फुट ऊँचा होता है। सारे भारत में यह पाया जाता है। इसका दूध अनेक रोगों में काम आता है।
यह वृक्ष शरीर के लिए पौष्टिक तत्वों से भरा हुआ है। यह कफ, पित्त नाशक है। रक्तशोधक है, बल और वीर्य में वृद्धि करने वाला है, सूजन को दूर करता है, इसकी तासीर शीतल है और स्वाद कषाय है। बवासीर, प्रमेह, वमन, अतिसार, खाज, खुजली, घाव, सुजाक, मधुमेह आदि रोगों में भी इसका उपयोग होता है।
बरगद के दूध की दो-तीन बूंदें बताशे में डालकर खाने से 15-20 दिनों में ही वीर्य गाढ़ा और पुष्ट हो जाता है, जिससे सहवास के समय 'स्तम्भन शक्ति बढ़ जाती है।
बरगद के पत्तों पर चिकनी सतह की ओर तेल चुपड़कर उन्हें आँच पर गर्म करके सूजन और दर्द वाले स्थान पर बाँध देना चाहिए। दो-चार बार में ही दर्द और सूजन खत्म हो जाएगी।
बरगद के 5-6 पत्ते कोमल वाले और इसकी जटा 10 ग्राम लेकर जरा-सी मसूर के साथ पीसकर चेहरे पर चुपड़ लें या अच्छी तरह लेप कर लें। इससे चेहरे की कील-मुँहासे दूर हो जाते हैं। बरगद के पीले पत्ते 5, निगुण्डी के बीज 5 ग्राम, प्रियंगु 5 ग्राम, मुलैठी 5 ग्राम, कमल के पुष्प 5, केशर 2 ग्राम, लाख 2 ग्राम तथा इन्द्रायण की जड़ 10 ग्राम लेकर जल के साथ पीस लें और फिर उसका लेप चेहरे पर करें। सूख जाने के एक घंटे बाद गर्म जल से धो लें और चेहरे पर कोई हल्की क्रीम लगाएँ। चेहरे की त्वचा खिल उठेगी।
बरगद की 5 बूंदें, बकरी के 5 ग्राम दूध में मिलाकर कान में दो-तीन बूंदें डालें। इससे कान के अनेक रोग, जैसे-'दर्द', 'फुसी', 'कीड़ा' ‘कम सुनना' आदि नष्ट हो जाते हैं। इसके दूध की 3-4 बूंदों को सरसों के तेल में मिलाकर भी डाल सकते हैं।
बरगदके पत्तों की 25-30 ग्राम राख को 100 ग्राम अलसी के तेल में मिलाकर सिर की रोज मालिश करें। सिर की रूसी ‘बालों का झड़ना', 'रूखापन', आदि नष्ट हो जाएगा।
बरगद की छाल 10 ग्राम, कत्था 5 ग्राम, काली मिर्च 2 ग्राम, इन तीनों को पीसकर महीन चूर्ण बना लें और उसे मंजन की तरह दाँतों पर मलें। ‘दाँतों का दर्द', ‘दुर्गन्ध', 'मसूड़ों का दर्द' आदि नष्ट हो जाएगा।
बरगद की जटा का 5 ग्राम चूर्ण दूध में मिलाकर पिलाने से नक्सीर रुक जाती है।
बरगद के कोमल लाल-लाल पत्तों को छाया में सुखा लें और कूटकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण का 1 चम्मच चूर्ण 500 ग्राम जल में पकाएँ। जब पानी चौथाई रह जाए, तब उसमें 2-3 चम्मच चीनी मिलाकर सुबह-शाम सेवन करें। इससे जुकाम', 'सर्दी, खाँसी', 'मस्तिष्क की दुर्बलता' आदि नष्ट हो जाते हैं।
नेत्र रोग में बरगद का 10 ग्राम दूध, चौथाई ग्राम कपूर और 2 चम्मच शहद आपस में मिला लें और उसका प्रयोग आँखों में अंजन की तरह नित्य करें। इससे नेत्र की ‘फूली', 'रोहे', ‘लाली’, ‘रतौंधी’, ‘खाज-खुजली' आदि सभी दूर हो जाते हैं।
बरगद के 10 ग्राम कोमल हरे पत्तों को 150 ग्राम जल में अच्छी तरह पीसकर छान लें। फिर उसमें चीनी मिलाकर 15 दिन सुबह-शाम पिलाएँ। शर्तिया हृदय रोग में लाभ होगा।
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