बच्चों में जिगर या तिल्ली के बढ़ने से भोजन में अरुचि भाजन का ठीक न पचना, प्यास की अधिकता, अफारा, कब्ज का होना, आलस्य, अंगों में टूटन, हलका बुखार, खांसी, वजन में कमी, जोड़ों में दर्द, पेट पर नीली या पीली शिराओं का दिखना, पेट में जिगर दाहिनी ओर तथा तिल्ली बाई ओर बढ़ने पर उठी दिखाई देना आदि लक्षण मिलते हैं।
1। कालमेघ रस मधु के साथ दिन में तीन बार प्रयोग करें।
2। मुली का स्वरस एवं यवक्षार मधु के साथ दिन में तीन बार सेवन करें।
3। कुटकी मूल चूर्ण शर्करा के साथ दिन में तीन बार सेवन करें।
4। वृहत यकृदरिलौह, पुनर्नवामंडूर, आरोग्यवर्धिनी वटी दिन में तीन बार दें।
5।
कुमारी आसव समभाग जल मिलाकर भोजन के बाद दो बार दें।
6। रोहितकारिष्ट समभाग जल मिलाकर भोजन के बाद दें।
7। अभयारिष्ट समभाग जल मिलाकर भोजन के बाद दें।
8। पुनर्नवासव समभाग जल मिलाकर भोजन के बाद दें।
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