जिस रोग में रोगी बुद्धि एवं मन के विकार के कारण अपनी याददाश्त या चेतनता थोड़ी देर के लिए खो देता है और यह दौरे के रूप में आता है उसे अपस्मार या मिर्गी रोग कहते हैं।
दौरे के समय रोगी को जगाने के लिए मूच्र्छा की तरह उपाय करें। घोड़े की सवारी, मोटर साइकिल चलाना, तैरना, पेड़ या पहाड़ पर चढ़ना, आग तापना आदि कार्य सद्यः-घातक हो सकते हैं।
1। वातकुलांतक रस 120 मिग्राम स्मृतिसागर रस 120 मि.ग्राम दिन में दो बार मधु के साथ दें।
2। इंदब्रह्म वटी 120 मि.ग्राम पिप्पली चूर्ण दशमूल क्वाथ के साथ दो बार दें।
3। चंडभैरव रस 120 मि.ग्राम शुद्ध हींग काला नमक कूठ के चूर्ण के साथ दो बार दें।
4। चिंतामणि चर्तुभुज 120 मि.ग्राम वचा चूर्ण मधु के साथ दो बार दें।
5। ब्राह्मी वटी 120 मि.ग्राम मधु के साथ दो बार दें।
6। गधी का मूत्र अपस्मार की उत्कृष्ट औषधि है। उसे ताजा लेकर 50 मि.ग्राम की मात्रा में दो बार पिलाएं।
7। वचा चूर्ण दो ग्राम की मात्रा में तीन बार मधु के साथ अधिक दिन तक देने से रोगी अपस्मार मुक्त हो जाते हैं।
8। सारस्वत चूर्ण 1-2 ग्राम पानी के साथ दो बार दें।
9। जटामांस्यादि क्वाथ 15-30 मि.लि। शहद के साथ दिन में दो बार दें।
10। ब्राह्मी घृत, ब्राह्मी रसायन 10 ग्राम दूध के साथ दो बार दें।
11। दशमूलारिष्ट, अश्वगंधारिष्ट, सारस्वतारिष्ट 30 मि.लि। भोजन के बाद समान जल मिलाकर दें।
लाभ:- गेहूं, मूग, दूध, घी, ब्राह्मी की पत्ती, परवल, अंगूर और शांत, एकांत, स्नान, मालिश, ध्यान, प्राणायाम का अभ्यास, वातनाशक आहार मानसिक रोगों में हितकर है।
नुकसान:- शराब, विरोधी आहार-विहार, निंद्रा का रोकना, गर्म भोजन, अधिक नमक, मसाला, अचार, तीखे। पदार्थ अपथ्य हैं। रोगी की जल कूप, नदी, तालाब, अग्नि से रक्षा करें।
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