इमली को संस्कृत में ‘अम्लिका', 'तिन्तड़िका', 'आत्यम्ला', 'भुक्ता', ‘दंतशठा', 'चिंचिका' आदि नामों से पुकारा जाता है। इमली के वृक्ष काफी ऊँचे होते हैं और सघन छायादार होते हैं। यह एक प्रसिद्ध वृक्ष है। इस पर 3-4 इंच लंबी फलियाँ लगती हैं। जब तक वे हरी रहती हैं, तब तक उन्हें 'करारे' नाम से भी पुकारा जाता है। इसके वृक्ष सड़कों के किनारे और बागों में लगाएँ जाते हैं। पकने पर फलियों को ‘इमली' कहते हैं।
किराना स्टोर में यह आम रूप से मिल जाती है। इसके पत्ते छोटे-छोटे हैं और एक टहनी में एक साथ 18-20 के लगभग आमने सामने लगते हैं।
कच्ची इमली अति खट्टी, भारी, गर्म तासीर वाली, रुचिकर, मलरोधक, अग्नि प्रदीपक, वातनाशक, कफ, पित्त को नष्ट करने वाली, रक्त विकार करने वाली होती है। पकी इमली अग्निप्रदीपक, रूखी, दस्तावर, गर्म, कफ और वात को नष्ट करने वाली होती है। साथ ही बादी और पित्त उत्पन्न करने वाली होती है। इसके बीज प्रमेह नाशक, वीर्य स्तम्भक और कब्ज करने वाले होते हैं।
इमली के 15-20 ग्राम पत्तों को आधा लीटर पानी में पकाकर काढ़ा बना लें और उस काढ़े को दिन में 2-3 बार रोगी को पिलाएँ। जल्द आराम होता है। इमली के बीजों को तोड़कर उसकी मींगी (भीतरी गूदा) निकालकर पीस लें। उस चूर्ण की 5 ग्राम मात्रा या आधा चम्मच रोगी को सुबह-शाम ताजे जल से सेवन कराएँ। आँव खून का आना बंद हो जाएगा।
यदि आँव खून दस्त ज्यादा पुराने हो जाएँ तो इमली के पौधों की जड़ का छाल 3 ग्राम, काली मिर्च 3-4 नग, दोनों को मट्ठे (छाछ) के साथ खरल कर ले वल पर पीस लें और मटर के बराबर उसकी गोलियाँ बना लें । एक-एक गोली दिन में तीन बार रोगी को ताजे फल से दें। खूनी दस्तों में बहुत जल्द आराम मिलेगा।
शरीर दर्द में पकी हुई 10 ग्राम इमली को एक गिलास पानी में भिगोकर रख दें और थोड़ी देर बाद उसे मलकर छान लें। उस पानी को मिश्री मिलाकर रोगी को पिलाने से सिर दर्द व शरीर के किसी भी अंग में हुए दर्द में बड़ा आराम मिलता है।
इमली के फूलों की पुल्टिस बनाकर आँखों पर गर्म-गर्म बाँधने से आँखों की लाली, सूजन, पीड़ा शांत हो जाती है। आँख की पलकों पर गुहेरी निकल आने पर इमली के बीज को पानी के साथ सिल पर रगड़ें और उसे चंदन की तरह गुहेरी पर लगाएँ। गुहेरी जल्दी ठीक हो जाती है।
इमली के पानी से कुल्ले करने पर गले की सूजन दूर हो जाती है और गदूदों में भी आराम मिलता है। गला साफ हो जाता है। 5-6 ग्राम पकी इमली को दो लीटर पानी में उबालें। जब पानी आधा रह जाए तब उसमें 10 ग्राम गुलाब जल मिला लें और छान लें। फिर उस पानी से कुल्ले करें। कंठ की सूजन उतर जाएगी। गदूदों की दुखन जाती रहेगी।
इमली के पेड़ की छाल 250 ग्राम लेकर उस पर थोड़ा-सा सेंधा नमक छिड़क दें और उसे मिट्टी की हंडिया में डालकर जला लें। जब उसकी राख बन जाए तब उसे कपड़छन कर लें। उसे एक शीशी में भरकर रख लें। जब कभी पेट में दर्द या बदहजमी की शिकायत हो तो उसमें से चौथाई चम्मच चूर्ण लेकर शहद के साथ रोगी को चटाएँ या पानी से फंकी लगवा दें। तत्काल आराम मिलेगा।
पकी इमली को पानी में भिगो दें और सुबह उसके जल को छान कर पी लें। इससे आँखों में हो जाने वाले घाव तक मिट जाते हैं और खुलकर भूख लगती है। 20-25 ग्राम पकी इमली को आधा लीटर पानी में मसलकर छान लें और उसमें 50 ग्राम मिश्री, 25 ग्राम दालचीनी का चूर्ण, 5 ग्राम लौंग (पिसी), 15 ग्राम बड़ी इलायची का चूर्ण मिला दें।
पेट के किसी भी प्रकार के अपच संबंधी रोगों में इस पानी को एक-एक चम्मच दिन में 2-3 बार रोगी को पिलाएँ। इससे खुलकर भूख लगती है। वायु विकार पर अंकुश लगता है और रोगी अपने-आपको तरोताजा महसूस करने लगता है।
इमली को पानी में भिगोकर इसके बीजों को अलग कर लें और उनके छिलके उतार लें। छिलके उतरे सफेद बीजों को सुखाकर बारीक चूर्ण बना लें। इस चूर्ण की एक चम्मच मात्रा एक बार में लेकर, दिन में तीन बार दूध के साथ सेवन करें। वीर्य का पतलापन दूर हो जाएगा और वीर्य गाढ़ा होकर पुष्ट हो जाएगा। इमली के बीजों को भूनकर उनका छिलका अलग कर दें और गिरी को कूटपीसकर कपडछन कर लें। एक चम्मच चूर्ण में उतनी ही मिश्री अथवा शहद मिलाकर सेवन करने से वीर्य पुष्ट होता है और मूत्रदाह दूर हो जाता है। इमली की गिरी का चूर्ण पुराने गुड़ के साथ खाने पर वीर्य स्तम्भन होता है। और भरपूर सेक्स सुख प्राप्त करता है।
चर्म रोग में इमली के बीज को नींबू के रस में घिसकर दाद' पर लगाने से दाद मिट जाता है। इमली के 10-15 ग्राम पत्तों को गर्म करके उनकी पुल्टिस बनाकर बाँधने से फोड़े-फुसी पक कर फूट जाते हैं। शरीर का कोई अंग यदि जल जाए तो मीठे तेल के साथ इसकी छाल का सूखा चूर्ण घाव पर लगाना चाहिए।
यदि शरीर पर हो जाएँ जो इमली के बीजों की मींगी और बावची का चूर्ण बराबर मात्रा में लेकर उसका पानी के साथ लेप बना लें और सफेद दाग के स्थान पर नित्य लगाएँ। शीघ्र ही आराम मिल जाएगा।
इमली के पत्तों के काढ़े से जख्म को धोएँ। बहुत दिनों का घाव भी इससे ठीक हो जाता है।
20-25 ग्राम पकी इमली को एक गिलास पानी में रात को भिगो दें और सुबह उसका जल निथारकर या छानकर उसमें थोड़ी मिश्री या बूरा मिलाकर, ईसबगोल 10 ग्राम के साथ रोगी को पिलाएँ। कैसा भी बुखार क्यों न हो, जल्द उतर जाएगा। गर्मी के ज्वर में इमली का शर्बत लाभदायक होता है।
इमली के कोमल पत्तों और पुष्पों को शाक की तरह पकाकर रोगी को खिलाएँ। इससे शरीर की जलन, पित्त और कफ आदि का नाश हो जाता है। मिश्री मिलाकर इमली का पानी पिलाने से भी हृदय की जलन शांत हो जाती है। पित्त और कफ में आराम मिलता है।
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