गुलदाउदी को संस्कृत में शिवबल्लभा', 'चंद्रमल्लिका', 'सेवंती', 'शतपत्रिका आदि नामों से पुकारते हैं। इसके फूल सफेद, नारंगी, पीले, गुलाबी, बैंगनी आदि अनेक रंगों में पाए जाते हैं। इसके पौधे प्रायः बगीचों और घरों के गमलों में लगाए जाते हैं। इसके पत्ते आगे से त्रिशूल की भाँति कटे होते हैं। इसके पौधे 2-3 फुट की ऊँचाई तक ही जाते हैं। जिस गुलादाउदी के पौधे पर छोटे फूल लगते हैं, वह औषधि के लिए अधिक गुणकारी होते हैं। भारत में ये हर जगह पाए जाते हैं।
गुलदाउदी स्वाद में कटु और तासीर में ठंडा होता है। यह पौष्टिक, उत्तेजक, वीर्यवर्द्धक, पित्तनाशक, ऋतुस्राव को नियमित करने वाला, पेशाब लाने वाला, रक्त विकार, को ठीक करने वाला, कान्तिवर्द्धक, जलन को शांत करने वाला तथा बवासीर आदि रोगों में सहायक होता है।
यदि खूनी बवासीर हो तो इसके 10 ग्राम पत्तों का रस 20 ग्राम शक्कर के साथ मिलाकर रात्रि में सेवन करें। प्रातः रक्त गिरना बंद हो जाएगा और पीड़ा में भी बड़ा आराम मिलेगा।
इसके फूलों का काढ़ा सुबह-शाम एक-दो चम्मच पीने से पेट-दर्द वायु विकार पित्त, कफ और कब्ज आदि में आराम आता है।
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इसके फूलों का एक छोटा चम्मच अर्क या इसके फूलों से बनाया गया गुलकंद, सुबह-शाम लेने से वीर्य पुष्ट होता है और हृदय की धड़कनें सामान्य हो जाती हैं।
गुददाउदी के 10 ग्राम पत्तों को 2 नग काली मिर्च के साथ पीस लें और उसे दिन में दो तीन बार रोगी को चटाएँ। इससे मूत्र खुलकर आयेगा। इससे पेशाब में होने वाली जलन भी शांत हो जाती है।
गुलदाउदी के 15-16 ग्राम फूलों को सुखा लें। जब वे सूख जाएँ तब उन्हें पीस लें। उस चूर्ण में से 5 ग्राम की मात्रा लेकर उसमें उतनी ही मिश्री मिला दें और रोगी को दिन में दो बार दें। इससे गुर्दे और मसाने की पथरी टूटकर और गलकर पेशाब के रास्ते या मल के रास्ते निकल जाएगी। गुलदाउदी के फूलों का काढ़ा बना लें और उस काढ़े को सुबह-शाम थोड़ा सेवन करें। इससे भी ‘पथरी' गलकर बह जाएगी।
जो युवतियाँ अनियमित मासिक धर्म के कारण परेशान रहती हैं, उन्हें चाहिए कि वे गुलदाउदी के 10-15 ग्राम फूलों को एक पाव पानी में पका लें। जब पानी चौथाई रह जाए तब उस काढ़े को छानकर सुबह-शाम सेवन करें। इससे मासिक धर्म की अनियमितता समाप्त हो जाती है।
गुलदाउदी के हरे पत्तों को पीसकर उसका लेप गुदा और अण्डकोशों के मध्य करना चाहिए। इससे यौन-शक्ति की उत्तेजना बहुत बढ़ जाती है।
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