गर्भावस्था क्या है? | गर्भ ठहरने के लक्षण और इसकी अवधि काल |

हर युवती के जीवन का सबसे बड़ा और महत्त्वपूर्ण लक्ष्य और इच्छा होती है मां बनने की। मां बनने का उसका स्वप्न विवाह के बाद ही साकार होता है। क्योंकि मां बनने की क्रिया को वह बिना पुरुष के संपर्क के पूर्ण नहीं कर सकती। क्योंकि जैसे बिना नारी के पुरुष अधूरा होता है वैसे ही बिना पुरुष के नारी भी अधूरी होती है।

गर्भधारण कि प्रक्रिया में पुरुष और स्त्री के सम्भोग के उपरान्त पुरुष द्वारा स्त्री कि योनि के माध्यम से गर्भाशय में शुक्राणुओ को डालते है। इस प्रकार हर मास स्त्री की डिम्ब ग्रन्थि से एक डिम्ब पुरुष के वीर्य में मौजूद शुक्राणु से मिलता है। यदि ये दोनों डिम्ब और शुक्राणु एक दूसरे से मिलकर जीवित रहकर एक नये जीवन की उत्पत्ति करने में समर्थ होते हैं तो इससे 'गर्भ रह जाता है। जो गर्भावस्था कहलाता है।

गर्भावस्था के लक्षण

  • भोजन लालसा और गंध की भावना में बदलाव
  • मिचली या उल्टी आना
  • माहवारी न आना
  • मनोदशा में बदलाव
  • पेट फूलना
  • बार-बार पेशाब आना
  • थकान

गर्भावस्था की अवधि

आरम्भ में भ्रूण बहुत छोटा होता है। यह शुरू में गर्भाशय की झिल्ली से चिपका रहता है। इस झिल्ली में बहुत मात्रा में रक्त आता है। डिम्ब ग्रन्थियों में प्रोजैस्ट्रोन नाम का हारमोन पैदा होकर रक्त में मिलने लगता है। इस प्रकार भ्रूण बढ़ने लगता है और उसका पालन-पोषण होने लगता है जब यह भ्रूण बढ़ने लगता है तो इसके चारों ओर झिल्ली लिपट जाती है जो आगे चलकर गर्भाशय की परत बन जाती है।

भ्रूण के तंतु आपस में मिलकर धीरे-धीरे अंवल नाल बन जाते हैं। यह अंवल नाल ही गर्भाशय से भ्रूण को जोड़े रखती हैं इस नाल के जरिये ही गर्भस्थ शिशु जिसे आरम्भ के तीन-चार महीने तक भ्रूण कहा जाता है, आक्सीजन, भोजन और बढ़ने के लिए रक्त तथा अन्य पदार्थ प्राप्त करता है।

'गर्भ' रह जाने के बाद मासिक धर्म बन्द हो जाता है और बच्चे का शरीर धीरे-धीरे बनने लगता है। तीन-चार मास में बच्चे में जीवन का पूर्ण संचार हो जाता है और वह हिलने-डुलने लगता है।

पांचवें महीने में शिशु का आकार और बड़ा होकर स्पष्ट हो जाता है और गर्भवती मां का पेट फूल जाता है। स्तन काफी फूल जाते हैं उनमें दूध निर्माण होना आरम्भ हो जाता है।

सातवें महीने में इसकी लम्बाई लगभग एक फुट की हो जाती है तथा वजन लगभग डेढ़ पौंड। इस अवधि में उसके सारे अंग अच्छी तरह विकसित हो चुके होते हैं और वह हरकत करता है, पैर हिला सकता है। उसके फेफड़े, गुर्दे, आंतें सभी कुछ क्रियाशील हो जाते हैं।

आठवें मास में तो बच्चे की हरकतें बढ़ जाती हैं और उसकी गर्भस्थ हरकतें माता को गुदगुदाती रहती हैं।

नवें मास के अंत में 252 दिन पूरे हो जाने के बाद बच्चा पूर्णयता विकसित होकर जन्म के लिए तैयार हो जाता है। इस अवधि में दस-पन्द्रह दिनों का अन्तर हो सकता है।

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