टिटनेस क्या है | टिटनेस के लक्षण और चिकित्सा

यह रोग क्लोस्ट्रीडियम टेटेनी नामक जीवाणु से फैलता है। जो कि घोड़े, गाय आदि पशु एवं मनुष्य की आंतों में पाए जाते हैं। यह जीवाणु इनके मल के साथ निकलकर वातावरण में धूल, मिट्टी में फैल जाते हैं। शरीर में किसी दूषित घाव से या पैर में कील चुभ जाने से ये धनुर्वात के जीवाणु शरीर में घुसकर आक्षेप या झटके पैदा कर देते हैं।

टिटनेस के लक्षण

  • इसमें पहले जबड़े बंद हो जाते हैं।
  • गरदन की पेशियों में अकड़ाहट व मुख की पेशियों में कड़ापन आकर त्यौरियां चढ़ जाती हैं।
  • दांत बंद हो जाते हैं।
  • धीरे-धीरे कमर, छाती एवं भुजाओं की पेशियां कड़ी हो जाती हैं।
  • झटके आने लगते हैं।
  • झटकों का समय कुछ सेकेंडों से कुछ मिनटों का होता है।
  • दो झटकों के बीच का समय लगभग आधा घंटा होता है।
  • झटके अत्यंत पीड़ा देने वाले होते हैं।
  • यह रोग मारने वाला है।
  • श्वास के रुकने से मृत्यु हो जाती है।

चिकित्सा

1। वातनाशन रस 120 मि.ग्राम, रसराज रस 120 मि.ग्राम अदरक रस व शहद के साथ दो बार दें।

2। त्रैलोक्य चिंतामणि रस 60 मि.ग्राम, योगेंद्र रस 120 मि.ग्राम, मल्लसिंदूर 60 मि.ग्राम, शहद में मिलाकर दो-तीन बार दें।

3। स्वर्ण समीर पन्नग रस 60 मि.ग्राम, मल्ल चंद्रोदय रस 120 मि.ग्राम, शहद के साथ दो बार दें।

4। सिद्ध मकरध्वज 120 मि.ग्राम, सूचिका भरण रस 120 मि.ग्राम, दिन में दो बार शहद के साथ दें।

5। कुपीलु तेल, महामाष तेल की मालिश करें।

6। रोगी को अंधेरे कमरे में रखें।

टिटनेस के रोगों में घी एवं तेल के भोजन, मधुर लवण रस वाले पदार्थ, पुनर्नवा पत्तों का शाक, अनार, अंगूर, एरंड तेल, मूंग की दाल, हींग, अदरक, सौंठ, मैथी, लहसुन, अजवायन, हल्दी, उष्ण जल का पान एवं स्नान, उष्ण वातावरण में रहन-सहन लाभकारी होता है।

मटर, चना, आलू, उड़द, राजमा, फूलगोभी, अमचूर, दही, छाछ, खट्टे पदार्थ, ठंडा जल पीना व स्नान और ठंडे वातावरण में रहन-सहन अहितकर होता है।

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