नवजात शिशु की त्वचा का देखभाल व घरेलु इलाज के उपाय

शिशु को स्नान करवाना जरूरी है, इससे उसके शरीर का सही विकास होता रहता है। मगर यह स्नान कराने में कुछ सावधानियां जरूरी हैं, अन्यथा लाभ की जगह हानि भी हो सकती है। जब शिशु का नाल सूख जाए, तब उसे हर दूसरे-तीसरे दिन नहलाती रहें। कभी-कभी रोजाना भी नहला सकते हैं।

यदि मौसम गर्मी का है, तब प्रतिदिन ही नहलाना ठीक रहता है। कुछ शिशुओं की त्वचा इतनी कोमल होती है कि स्नान कराने से उनके शरीर का चर्म चटखने लगता है। देखने से ऐसा लगता है, जैसे इस पर से परत हटने लगी है। नीचे से छिली हुई त्वचा निकल आती है। यह बहुत चिंता का विषय नहीं है। डॉक्टर को दिखाएं ।

नवजात शिशु की त्वचा का देखभाल:

1। बेबी सोप : कोमल शिशु को नहलाने के लिए प्रयोग होने वाला साबुन भी गलत हो सकता है। जिस साबुन से बड़े नहाते हैं, वह साबुन कुछ शिशु सहन नहीं कर सकते। उनको नहलाने के लिए ‘बेबी सोप' स्पेशल बना हुआ बाजार में उपलब्ध रहता है। यह बहुत कोमल होता है। शिशु का त्वचा इसे स्वीकार कर सकती है। ऐसे साबुन से त्वचा को कोई हानि नही होती है।

2।

नरम तौलिया : शिशु का बदन जिस तौलिए से पोंछना है, वह भी बहुत कोमल हो। सख्त रोएं का तौलिया या खुरदरा तौलिया प्रयोग में न लाए। इससे भी शिशु की त्वचा चटकने लगती है। स्नान कराने के पश्चात् नरम तौलिए में शिशु को लपेट लें। इस तौलिए से शरीर सुखा दें। थपथपा दें। रगड़े नहीं। अब शरीर पर न तो निशान पड़ेंगे, न ही त्वचा रगड़ी जाएगी।

3। जैतून के तेल से मालिश : कुछ शिशु और भी कोमल होते हैं, यदि उन्हें स्नान करा दें, तो उनकी त्वचा उचटने लगती है। उनका शरीर इतना दृढ़ नहीं हो सका कि उसे स्नान करवाया जा सके। ऐसे कोमल बच्चों को अभी स्नान मत कराएं। कुछ समय और प्रतीक्षा करें। मगर बदन तो साफ करना ही है। उस शिशु के शरीर पर जैतून के तेल से मालिश किया जाना ही ठीक रहता है। प्रतिदिन मालिश करने से उसके शरीर में फुर्ती आ जाती है। कभी-कभार नहला कर देख लें। जब शिशु स्नान को सहन करने लगे, फिर अन्य बच्चों की तरह स्नान करा दिया करें।

संक्रमण का भय होने पर घरेलु इलाज :

जिस शिशु का शरीर कोमल है। उसकी त्वचा स्नान, साबुन या तौलिए के प्रयोग को सहन नहीं कर सकती। शरीर पर से त्वचा चटखने लगती है। कहीं-कहीं से यह उचट जाती है, तब तो और भी सावधानी की आवश्यकता है। यह स्थिति बच्चे के लिए अधिक घातक सिद्ध हो सकती है। शिशु के संपर्क में आने वाले अभिभावक, मां, नर्स आदि किसी के भी हाथों में नाखूनों में संक्रामक जीवाणु हो सकते हैं, जो उचट चुकी कोमल त्वचा पर प्रभाव डाल सकते हैं।

ये जीवाणु शिशु की त्वचा में सुगमता से प्रवेश कर जाते हैं। कई बार तो पहले प्रयोग में लाए साबुन या तौलिए में भी रोग के जीवाणु विद्यमान रहते हैं, इन्हीं से ये शरीर की त्वचा में प्रवेश कर शिशु को रोगी कर देते हैं।

जो पाउडर लगा रहे हैं, यह भी हानिकारक हो सकता है। जो वस्त्र पहनाए गए हैं, उनकी रगड़, उनमें विद्यमान जीवाणु भी त्वचा को प्रभावित कर देते हैं। छिली हुई त्वचा इन रोग के जीवाणुओं को तुरंत ग्रहण कर लेती है। इससे शरीर में फोड़े, फुसियां हो जाती हैं। फोड़े अधिक फैलकर पूरे शरीर पर हो सकते हैं। छोटी फुसियां या दाने भी बेहद हानिकारक होते हैं। ये ज्वर भी कर देते हैं।

इसलिए मां को चाहिए कि वह:-

  • कोमल बेबी सोप का प्रयोग करें।
  • शिशु के लिए अलग तौलिया रखें, जो काफी नरम हो । उस तौलिए से कोई अन्य हाथ न पोंछे।
  • शिशु को तौलिए में लपेटकर थोड़ा थपथपा कर बदन को सुखाएं, पोंछे नहीं, रगड़े नहीं। त्वचा को कोई हानि न होने दें।

नाल में संक्रमण होने पर घरेलु इलाज:

यदि नाल सूख गया है, तो भी इसे चैक करें। कहीं इसमें संक्रमण का कोई लक्षण तो नजर नहीं आ रहा। पूरी तरह सूखा हुआ है या कसर है। कहीं यहां स्राव या पीव आदि जमा तो नहीं। गीला तो नहीं लग रहा। यदि ऐसा जरा-सा भी आभास हो, तो साफ व शोषक रुई लेकर उससे साफ करें। मगर अपने हाथ पहले से धोकर, साफ करके सुखाकर ही चैक करें।

यदि आप को लगे कि यहां पीव है, पानी-सा है, नाभि का यह स्थान गीला है, तब डॉक्टर की सलाह लें। आप स्वयं भी ‘विसंक्रामक विलयन' लेकर साफ रुई के साथ इसे साफ कर सकती हैं।

जैशियन वायोलेट लोशन एक प्रतिशत लेकर उस स्थान पर लगाए, तो भी नाल पूरी तरह सूख जाएगा तथा पीव आदि समाप्त हो जाएगी। यदि जैशियन वायोलेट लोशन एक प्रतिशत उपलब्ध न हो, तो सिटेवनौन एक प्रतिशत लेकर भी इस कार्य को पूर्ण कर सकते हैं।

ऐसी अवस्था में जब स्राव या पीव का आभास शिशु की नाभि पर हो जाए, तो उसके मुंह से पेनसिलिन देने का विधान है। यह 4-5 दिनों तक बूंद-बूंद करके दी जाती है। मगर इस कार्य को स्वयं तब हाथ में हैं, जब डॉक्टर से सलाह कर लें। उनके बताए तरीके को अपनाएं।

  • Tags

You can share this post!

विशेषज्ञ से सवाल पूछें

पूछें गए सवाल