शिशु के लिए उपयुक्त भोजन कहां से प्राप्त होता है|

जन्म लेने के बाद बच्चे के भोजन के लिए इधर-उधर से प्रबंध न करना पड़े और शिशु को यह भोजन मां की छाती से ही प्राप्त हो जाए, प्रकृति ने इसकी सुंदर व्यवस्था की है। यह आज की बात नहीं सृष्टि के आदिकाल से यही होता आया है।

फिर आधुनिक नारी इस ओर से मुंह मोड़कर प्रकृति का मजाक क्यों उड़ा रही है। देश, जाति और समय तीनों बातों को एक ओर रख दें, केवल मनुष्य ही नहीं सभी स्तनधारी जंतुओं ने सदा से ही शिशु का पोषण माता के दूध से किया है।

यह बात अलग है कि हम मेमने, बछड़े को पेट भर दूध न देकर बकरी या गाय का अधिक मात्रा में दूध निकाल लेते हैं। उसे भूखा रहने देते हैं।

दूध नहीं, कोलोस्ट्रम होता है माँ का दूध:

साधारणतया मांए नहीं जानतीं कि प्रसव हो जाने के बाद दो दिनों तक मां के स्तनों में जो बच्चे का भोजन उतरता है, वह दूध नहीं होता बल्कि अच्छी किस्म का कोलोस्ट्रम होता है। यह एक उच्च कोटि का रोग निरोधक तथा सुपाच्य पदार्थ है।

इन दिनों बच्चे को दिन में कई बार स्तन पान नहीं कराना पड़ता। बल्कि एक दिन में केवल चार बार ही पर्याप्त रहता है। तीसरे दिन से कोलोस्ट्रम घटने लग जाता है और दूध बढ़ने लग जाता है। पांचवें दिन तक पहुंचते-पहुंचते मां के स्तनों से केवल दूध ही निकलता है।

इसीलिए अब बच्चे की जरूरत बढ़ चुकी होती है। पहले दो दिन तो केवल चार बार, मगर तीसरे दिन से हर तीन या चार घंटों बाद बच्चे को दूध पिलाएं। उसे भूखा न रखें। जब बच्चे का पेट भर जाता है, वह स्वतः दूध पीना छोड़ देता है।

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