गर्भावस्था के दौरान एक माँ का उत्तरदायित्व कैसा होना चाहिए

माँ की आदतों का प्रभाव शिशु पर पड़े बिना नहीं रहता। उसको अपनी भूख और इच्छाओं पर सैद्धान्तिक रूप से नियंत्रण रखना चाहिए। एक बच्चे की जननी बनना कोई साधारण उत्तरदायित्व का काम नहीं है। इसलिए उसे बहुत संयमी जीवन बिताने की आवश्यकता है। अगर शिशु के जन्म के पूर्व नारी की स्वार्थी, अधीर, क्रोधी तथा विलासप्रिय रही, तो ये अवगुण उसके शिशु में भी निश्चय ही आ जाएंगे।

इस प्रकार के बच्चे जन्म के साथ ही कुछ ऐसी दुष्ट प्रवृत्तियों को लेकर आते हैं, जिन पर विजय प्राप्त करना बाद में कठिन हो जाता है। किन्तु यदि मां गर्भावस्था में नि:स्वार्थ, संयमी और उदार रही तो ये सद्गुण उसके शिशु में पाये जाएंगे।

कई लोग कहते हैं कि गर्भवती स्त्री की इच्छाएं जिन्हें 'दोहद' कहा जाता है, पुरी कर देनी चाहिए। मतलब यह है कि यदि वह कोई हानिकारक वस्तु खाने को मांगे तो वह भी उसे दे देनी चाहिए। इस तरह की सलाह बड़ी खतरनाक और हानिकारक है। इसमें कोई शक नहीं कि गर्भावस्था में स्त्री का बहुत ख्याल रखना चाहिए। नरमी के साथ व्यवहार करना चाहिए। उसकी जरूरतों को उदारतापूर्वक पूरा कर देना चाहिए।

लेकिन ऐसी हालत में उसे ऐसी कोई चीज नहीं देनी चाहिए, जो शारीरिक और मानसिक शक्ति को निर्बल बनावे। क्योंकि यह सदा याद रखना चाहिए कि शिशु पर मां की अच्छी या बुरी आदतों, दोनों का प्रभाव पड़ता है। अगर वह चाहती है कि उसका बच्चा स्वस्थ, सबल, चरित्रवान और राष्ट्र का गौरव बने तो उसे अपने ऊपर सैद्धान्तिक नियंत्रण तथा संयम रखना चाहिए।

जब तक उसको पौष्टिक पदार्थ काफी मात्रा में नहीं मिलेंगे, तब तक वह अपनी शारीरिक शक्ति बनाये नहीं रख सकती और उसका शिशु नि:शक्त हो जाता है अगर गर्भवती को पर्याप्त पौष्टिक भोजन न मिला हो तो उसमें रक्त की कमी हो जाएगी तथा रक्त संचार ठीक से न हो पायेगा और यही खराबी उसके बच्चे में भी पाई जायेगी।

जो नारी यह समझेगी कि उसके रहन-सहन का प्रभाव उसके गर्भस्थ एक-दूसरे प्राणी पर भी पड़ रहा है, वह कभी भी ऐसी गैरजिम्मेदारी से काम न करेगी। वह केवल अपने स्वाद की तुष्टि के लिए कोई ऐसी चीज नहीं खाएगी जो शरीर के लिए हानिकारक हो।

उन्हीं स्त्रियों के शिशु रोगी पैदा होते हैं जो अपनी भूख के वशीभूत होती हैं। यह बड़ी खराब आदत है कि एक बार मन में जो चीज खाने की इच्छा हो, वह पेट में पहुंच ही जाये। जो लोग स्वाद के गुलाम हो जाते हैं, उनको इसका बुरा फल अवश्य भुगतना पड़ता है केवल यही नहीं होता, बल्कि उनकी गलती का दुष्परिणाम उनके बच्चों को भी भुगतना पड़ता है।

बच्चा पैदा होने के पहले कई मातायें बहुत ज्यादा काम करती हैं। अधिक रात गये सोती और देर तक रसोई बनाने का काम करती रहती हैं। यह अधिक श्रम गर्भस्थ शिशु के पोषण में बाधक होता है। जिस समय उन्हें आराम मिलना चाहिए, उस समय उन्हें थकान, उदासी और चिड़चिड़ेपन का सामना करना पड़ता है, यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है।

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