फुस्फुस आवरण शोथ या प्लूरिसी क्या है | फुस्फुस आवरण शोथ के लक्षण और घरेलु इलाज़

फेफड़ों के आवरण के बीच द्रव का इकट्ठा होना ही फुस्फुस आवरण शोथ या प्लुरिसी कहलाता है। इसमें लगभग 80 प्रतिशत रोगियों में मुख्य कारण राजयक्ष्मा का दंडाणु होता है। अन्य जीवाणु से भी यह रोग होता है। जब आवरण के बीच द्रव कम होता है और आवरण के स्तर एक-दूसरे से अलग नहीं होते तो शुष्क प्लुरिसी, जब द्रव अधिक होने के कारण वे एक दूसरे से अलग हो जाते हैं तो द्रवीय प्लुरिसी, जब स्ट्रेप्ट्रो आदि के कारण पूय युक्त हो जाती है तो पूयल प्लुरिसी और जब यक्ष्मा घातक फोड़ा या आघात आदि के कारण एकत्रित द्रव रक्त के समान हो जाता है तो उसे रक्तस्रावी प्लुरिसी कहते हैं।

फुस्फुस आवरण शोथ के लक्षण

प्राय बच्चों और वृद्धों में धीरे-धीरे किंतु जवानों में एकाएक फैलकर तीन मुख्य लक्षण उत्पन्न होते हैं -

1। पाश्र्वशूल - जिस ओर फेफड़ों के आवरण में सूजन होती है उसी ओर शस्त्र के काटने के समान तीव्र दर्द होता है। जो खांसने, छींकने या गहरी सांस लेने से तेज हो जाता है। गरदन, कंधे, कमर तथा पेट में भी दर्द हो सकता है।

2।

खांसी - सूखी तथा पीड़ादायक होती है। थूक बहुत कम व देर से निकलता है।

3। बुखार - प्राय हलका या नहीं के बराबर, भूख न लगना, अंगों में टूटन आदि सामान्य लक्षण मिलते हैं।

फुस्फुस आवरण शोथ में घरेलु इलाज़

गर्म, पसीना लाने वाली, बुखार उतारने वाली, खांसी को ठीक करने वाली तथा पेशाब लाने वाली औषधि का प्रयोग करे। ठंडे पदार्थों से परहेज कराएं। पीने के लिए चतुर्थांश विशेष जल अल्प मात्रा में दें। नमक न दें।

1। शुद्ध कुपीलु 60 मि.ग्राम, रस सिंदूर 120 मि.ग्राम, मृगश्रृंग भस्म 500 मि.ग्राम, शहद में मिलाकर तीन बार सेवन कराएं।

2। सधानिधि रस 30 मि.ग्राम कल्याण सुंदर रस 120 मि.ग्राम यवक्षार 240 मि.ग्राम, दिन में तीन बार पुनर्नवा रस व शहद से दें।

3। पनर्नवाष्टक क्वाथ 50 मि.लि। दिन में दो बार गुग्गुल मिलाकर दें।

4 पनर्नवामंडूर 240 मि.ग्राम श्वेत चूर्ण 1 ग्राम, नारायण चूर्ण 1 ग्राम गरम जल के साथ दिन में दो बार दें।

5। शिलाजतु 1 ग्राम, त्रिफला चूर्ण 1 ग्राम गोमूत्र के अनुपान से दो बार दें।

6। महालक्ष्मीविलास रस 120 मि.ग्राम शहद के साथ मिलाकर दो बार चटाएं।

7। कस्तूरी भैरव रस 120 मि.ग्राम शहद के साथ मिलकर दो बार चटाएं।

8। सैंधा नमक मिला उष्ण सैंधवादि तेल की मालिश करें।

9। थूहर की पत्ती के रस व प्याज के रस में घिसकर मृगश्रृंग का गरम लेप करें।

10। मट्ठे में पकाकर रेह की पोलटिस आदि उपचार करें।

इस रोग में यक्ष्मा, सूजन हृदय रोग तथा श्वासकास की औषधियों का विवेचनपूर्वक प्रयोग करें।

लाभ:- पुराने अन्न, जौ, गेहूं, मूंग, मसूर, अरहर, मुनक्का, मीठे फल, किशमिश, परवल, तौरी आदि सब्जियां, लहसुन, प्याज, पुरानी शराब आदि इस रोग में हितकर हैं।

नुकसान:- भारी पदार्थ, रुखे-सूखे पदार्थ, भूखा रहना, अति भोजन, चिंता, धूल, धुआं, अधिक मेहनत रात्रि जागरण आदि त्याग दें। खीर, दही, ठंडा पानी, आइसक्रीम, बर्फ, कोल्डड्रिंक्स, खट्टी, तली चीजें, अचार, ठंडी हवा, ठंडे एवं गंदे वातावरण रोगी के लिए हानिकारक हैं।

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