मानसिक रोग से बचाव और छुटकारा - Treatments And Prevention For Mental Illness
बहुत से लोगों का मानना है कि मानसिक रोग असाधारण हैं। मानसिक रोग वास्तव में कैंसर, मधुमेह या हृदय रोग से ज्यादा आम हैं। मानसिक बीमारी एक ऐसी बीमारी है जो सोच या व्यवहार में गंभीर गड़बड़ी का कारण बनती है, जिसके परिणामस्वरूप जीवन की सामान्य मांगों और दिनचर्या से निपटने में कठिनाई होती है। इसलिए हमे मानसिक रोगो को हल्के मे नहीं लेना चाहिए बल्कि मानसिक रोग से बचाव और छुटकारा की तरफ ध्यान देना चाहिए जैसे-
- मानसिक रूप से कमजोर बच्चों के लिये अलग विद्यालय की व्यवस्था होनी चाहिये ताकि उन बच्चों पर विशेष ध्यान दिया जा सके तथा वहाँ उनको उचित दिशा-निर्देश देने चाहिये।
- सन्तुलित एवं पौष्टिक भोजन पर विशेष ध्यान देना चाहिये। अपर्याप्त पोषण, कुपोषण, गरीबी इत्यादि के कारण शिशु का शारीरिक वृद्धि एवं मानसिक विकास रुक जाता है, उसे कई प्रकार की पोषण-न्यूनता सम्बन्धी एवं अन्य प्रकार की बीमारियाँ हो जाती हैं। शारीरिक वृद्धि रुकने से बच्चे का मानसिक विकास रुक जाता है तथा बच्चा मानसिक रूप से कमजोर एवं चिड़चिड़ा हो जाता है।
- गर्भवती माता तथा दुग्धपान कराने वाली माता के खान-पान पर विशेष ध्यान देना चाहिये, क्योंकि अगर गर्भवती माँ को पूर्ण पौष्टिक एवं सन्तुलित भोजन (विटामिन और प्रोटीन युक्त भोजन) न दिया जाये तो इसका कुप्रभाव गर्भस्थ शिशु पर पड़ता है। इसके कारण शिशु का जन्म समय से पूर्व हो जाता है। शिशु काफी कमजोर एवं खून की कमी जैसे रोग से ग्रस्त रहता है तथा उसका मानसिक विकास भी पूर्ण रूप से नहीं हो पाता है।
- शिशु के विकास के लिये प्रथम पाँच वर्ष अत्यन्त ही महत्त्वपूर्ण होते हैं। इन दिनों बच्चा जो सीखता है, वह उसके जीवन-पर्यन्त काम आता है। अंग्रेजी मे एक कहावत है- "Child is the father of man." इन्हीं दिनों बालक कई प्रकार के दोष को सीखता है, अत: इस उम्र में बच्चे को अच्छे संस्कार देने की आवश्यकता है। माता बच्चे की प्रथम शिक्षिका होती है। अत: माता-पिता को चाहिये कि वे बच्चों को अच्छे से अच्छा वातावरण प्रदान करें ताकि बच्चे के सम्पूर्ण व्यक्तित्व का निर्माण हो सके।
- वृद्धावस्था में भी व्यक्ति मानसिक रूप से असन्तुलित हो जाता है, अत: परिवार के सदस्यों के द्वारा वृद्धों को पूरा सम्मान देना चाहिये। उनकी भावनाओं की कद्र करनी चाहिये। वृद्धाश्रम, वृद्धों के लिये पुनर्वास इत्यादि की भी व्यवस्था होनी चाहिये।
- गर्भावस्था के दौरान अक्सर प्रथम बार गर्भ धारण करने वाली गर्भवती माताएँ चिन्तित एवं तनावग्रस्त हो जाती हैं, अत: उन माताओं पर विशेष ध्यान देना चाहिये तथा उन्हें तनाव एवं चिन्तामुक्त रखना चाहिये।
- बेरोजगार शिक्षित एवं अशिक्षित युवकों हेतु रोजगार की व्यवस्था होनी चाहिये, जिससे कि उनमें निराशा एवं हीन भावना का जन्म न होने पाये।
- किशोरावस्था में किशोरों पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है, क्योंकि यह अवस्था क्रान्तिक एवं समस्याओं की अवस्था है।
इन बताए गए बातों पर ध्यान दे तो हम मानसिक रोग से बचाव और छुटकारा पा सकते है।
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