मलेरिया (विषमज्वर) क्या है | मलेरिया के कारण, लक्षण और घरेलु इलाज

जो बुखार कपकपी देकर चढ़े, कभी गर्मी के साथ चढ़े, जिसके होने, चढ़ने तथा ठहरने का समय निश्चित न हो, जिसके वेग में विषमता हो जाए उसे विषमज्वर (मलेरिया) कहते हैं। यह बारी से आने वाला बुखार है जो मच्छरों के काटने से होता है। इसमें कंपकपी देकर ठंड के साथ बुखार चढ़ती है और कुछ घंटे रहकर प्रायः पसीना देकर उतर जाता है। कुछ समय बुखार आने के बाद तिल्ली बढ़ जाती है तथा खून की कमी होने लगती है।

प्रकार

चरक ने ज्वर के ये पांच प्रकार माने हैं।

1। संतत ज्वर रस धातु जो 7 दिन, 10 दिन, 12 दिन तक बराबर बिना उतरे बना रहे।

2। सतत ज्वर रक्त धातु जो चौबीस घंटे में दो बार चढे ।

3। अन्येद्युष्क ज्वर मांस धातु जो 24 घंटे में एक बार चढ़े।

4।

तृतीयक ज्वर मेदो धातु जो प्रति तीसरे दिन चढ़े।

5। चतुर्थक ज्वर अस्थि व धातु मज्जा जो प्रति चौथे दिन चढ़े।

मलेरिया के कारण

विषम ज्वर एनाफिलीज जाति के मच्छरों की विशेष उपजातियों द्वारा फैलता है। मच्छरों में जब रोग का जीवाणु पहुंच जाएं तो आजीवन उसमें बसे रहते हैं। मच्छरों का जीवन अधिक से अधिक 8-9 महीने माना गाया है। मादा एनाफिलीज ही मनुष्य को काटता है। नर शाकाहारी होता है। जब मादा एनाफलीज मच्छर रोगी को काटता है तो रोगी का खून चूस लेता है।

रोगी के खून में जीवाणु उपस्थित होते हैं। वह भी खून के साथ मिलकर मच्छर के अंदर चले जाते हैं। कीटाणु पहले मच्छर के आमाशय में जाते हैं फिर आमाशय की दीवार में चले जाते हैं और वहीं बढ़ोतरी करते हैं। यहां से लार बनाने वाली ग्रंथियों में चले जाते हैं। जब मच्छर मनुष्य को काटते हैं तो यह जीवणु लार के द्वारा मनुष्य के शरीर में चले जाते हैं। यह सारी क्रिया 10 दिन में होती है।

प्रायः आधी रात से लेकर आधे दिन तक कभी भी बुखार का आना, काफी पसीना देकर ज्वर का उतर जाना, तिल्ली का बढ़ जाना, कभी-कभी जिगर भी बढ़ जाता है। सिर में दर्द आदि लक्षण होते हैं। प्रत्येक प्रकार के विषम ज्वर के ताप की तीन अवस्थाएं होती हैं। शीत अवस्था, उष्ण अवस्था और स्वेद (पसीने की) अवस्था।

मलेरिया के लक्षण

बुखार चढ़ने से कुछ समय पहले रोगी को सिर में दर्द, अंगों की टूटन, मितली आदि लक्षण प्रतीत होते हैं। फिर अचानक ठंड के साथ बुखार चढ़ता है।

1। शीत अवस्था - इस समय रोगी को बहुत ही ठंड लगती है जिससे वह कांपता है। यहां तक कि उसकी शय्या भी हिलती प्रतीत होती है। दांत किटकिटाते हैं। कई कंबल तथा रजाई डालने पर भी उसकी ठंड कम नहीं होती। नाड़ी की गति तेज हो जाती है।

2। उष्ण अवस्था - रोगी को गर्मी लगने लगती है। मुख लाल सूर्ख हो जाता है। त्वचा गर्म, खुश्क और लालिमायुक्त होती है। नाडी की गति तेज, आकृति और चाल अधिक होती है तथा बुखार तेज 103°F.105°F तक हो जाता है। यह अवस्था दो-चार घंटे तक रहती है।

3। स्वेद अवस्था - अब पसीना आने लगता है। पहले कुछ बूंदें ललाट और सिर पर तथा गरदन पर आती है। फिर सारे शरीर से पानी की तरह पसीना बहने लगता है। इसके बाद रोगी को शांति प्रतीत होती है और ज्वर जल्दी ही स्वस्थ रेखा या उससे भी नीचे उतर जाता है। रोगी को बहुत-सा मूत्र आता है और वह गाढ़े रंग का होता है।

चिकित्सा

1।

कुटकी चूर्ण 1 ग्राम सुदर्शन चूर्ण 2 ग्राम हरड, चूर्ण 1 ग्राम सब मिलाकर क्वाथ या फांट के रूप में देने से साधारण ज्वर दूर हो जाता है।

2। महाज्वराकुंश रस 120 मि.ग्राम शहद में मिलाकर तीन बार लेना चाहिए।

3। करंजादि वटी 240 मि.ग्राम दिन में तीन बार गरम जल से दें।

4। सर्वज्वरहर लौह 120 मि.ग्राम दिन में तीन बार शहद से चटाएं।

5। वृहत पुटपक्वविषम ज्वरांतक लौह 120 मि.ग्राम दिन में दो बार शहद मिलाकर चटाएं।

6। सप्तपर्ण घनवटी 2-4 वटी, गुडुची घनवटी, 2-4 वटी, सुदर्शन घनवटी 2-4 वटी दिन में दो-तीन बार दें।

7। देवदायादि क्वाथ, पटोलादिक्वाथ निंबादि क्वाथ, गुगुलतिक्त क्वाथ दिन में दो बार दें।

8। अमृतारिष्ट 20 मि.लि। प्रात सायं भोजन के बाद समभाग जल मिलाकर दें।

9। महासुदर्शन चूर्ण दो ग्राम दिन में तीन बार गरम जल से दें।

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