सिफलिस (आतशक) क्या है? सिफलिस फैलने के कारण और घरेलु इलाज

सिफलिस (आतशक) एक यौन संक्रमित बीमारी है जो जीवाणु संक्रमण से होती है। यह बहुत ही खतरनाक रोग है। इसके आरम्भ में जननांग पर एक फोड़ा रहता है जिसमें दर्द नहीं होता। यह चार-पांच सप्ताह में अपने आप ठीक हो जाता है। उसके कुछ दिनों लगभग आठ-दस सप्ताह बाद जोड़ों में दर्द, होंठ फटना, जननांग में खुजली तथा घाव होने लगते हैं।

शरीर के भीतरी तंतुओं पर इसका तेजी से असर होता है और इसके रोगाणु पूरे शरीर में फैल जाते हैं। इसके दो वर्ष बाद तो सारे शरीर में हुंसियां निकल आती है। होंठ फटकर विकृत हो जाते हैं तथा बेहद खुजली होती है। इस रोग की चपेट में शरीर का रक्त, मांस-पेशी, हड्डियां सभी कुछ आ जाती हैं।

सिफलिस (आतशक) फैलने के कारण

  • गर्भावस्‍था या प्रसव के दौरान यह शिशु को मां के भ्रूण में भी हो सकता है।
  • इसे जन्‍मजात सिफलिस कहा जाता है।
  • यह डोरकोन्‍स और टॉयलेट सीट जैसी वस्‍तुओं के साथ साझा संपर्क के माध्‍यम से।
  • यह असुरक्षित यौन संबंधों के कारण हो सकता है,

सिफलिस (आतशक) में घरेलु इलाज

1। आंवला– पानी में नीम की पत्तियां उबालकर घाव को धोएं। आंवलों का चूर्ण जलाकर इसकी राख को दिन में एक बार घाव पर बुरक दें। यह उपाय लगातार 20-25 दिन तक करते रहने से प्रारंभिक स्थिति में रोग नष्ट हो जाता है।

2। अरंडी का तेलगिलोय के काढ़े में लगभग 15 से 25 ग्राम तक अरंडी का तेल मिलाकर पीने से उपदंश में काफी फायदा होता है।

3। त्रिफला– त्रिफला के काढ़े से उपदंश के घावों को धोकर त्रिफला की राख में शुद्ध शहद मिलाकर लगाने से उपदंश के घाव ठीक हो जाते हैं। रसकपूर, सफेद कत्था, मुर्दासंख, संख-जीरा तथा सुपारी की राख या त्रिफला की राख को मिलाकर मरहम जैसा बनाकर उपदंश के घावों पर लगाने से फायदा होता है।

4। ईंख– कचनार की छाल, इन्द्रायण की जड़, बबूल की फली, जड़ तथा पत्तों सहित छोटी कटेरी तथा ईख का पुराना गुड़ 250 ग्राम-इन सबको लगभग चार लीटर पानी में डालकर मिट्टी की हॉडी में पकाएं जब पानी चौथाई रह जाए तब इसे उतारकर छान लें। यह दवा की आठ खुराक हैं। सुबह-शाम इसकी एक-एक खुराक का सेवन करें। इससे आतशक में लाभ होगा।

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धयान रखे:-

इस रोग से ग्रसित महिला की संतान को भी यह रोग लग जाता है। उसका कोई भी अंग विकृत हो सकता है। अतः यह रोग कभी न हो, इसके लिए हमेशा सचेत रहें। पहले लक्षण में ही डॉक्टर से सलाह लेने और उचित इलाज हो जाने पर यह भयंकर रूप धारण नहीं कर पाता। इसके लिए डर या झिझक की आवश्यकता नहीं।

क्योंकि इसका अर्थ केवल यह नहीं है कि यह परपुरुष से यौन संबंध से या इस रोग से ग्रस्त किसी स्त्री से समलैंगिक क्रिया द्वारा होता है। यह छूत से भी लग सकता है। अतः इलाज में लापरवाही न बरतें वरना जीवन भर के लिए आप अक्षम और विवाह योग्य या सुखी यौन जीवन बिताने से रह जाएंगी और आपके जीवन में केवल पीड़ा ही पीड़ा रह जाएगी।

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