हाई बीपी का घरेलू इलाज - कारण, लक्षण, और उससे बचाव

हाई बीपी को उच्च रक्तचाप  या हाइपरटेंशन  कहते है। ब्लड प्रेशर बल का एक माप है जिसका उपयोग आपका हृदय आपके शरीर के चारों ओर रक्त पंप करने के लिए करता है। हमारा खून हमारे पूरे शरीर में ऑक्सीजन पहुंचाता है। प्रत्येक दिल की धड़कन के साथ, दबाव उत्पन्न होता है जो दबाव की लहर प्रत्येक दिल की धड़कन के साथ धमनियों में फैलती है और आसानी से नाड़ी के रूप में महसूस किया जाता है। दिल पंपिंग के कारण दबाव आपके शरीर के सभी भागों में रक्त को रक्तचाप या बीपी कहा जाता है। सामान्य बीपी अच्छा स्वास्थ्य का एक संकेत है। पारा के मिलीमीटर में रक्तचाप को मापा जाता है। हाई बीपी का घरेलू इलाज हम अपने इस आर्टिकल मे बताएँगे।

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हाई बीपी क्या है – What Is High Pressure In Hindi

हाई बीपी क्या है? हृदय का बायाँ कक्ष (Ventricle) जितने दबाव से शरीर में फैली खून की नलियों में शुद्ध रक्त फेंकता है, उस दबाव को बीपी अथवा ब्लड प्रेशर ( Pressure) कहा जाता है।

बीपी दो तरह का होता है- सिस्टोलिक और डायस्टोलिक। जब रक्तवाहिकाओं में रकत फेंकने के लिए हृदय के कक्ष में संकुचन होता है तो उस समय नापे गए रक्त दाब को सिस्टोलिक (Systolic) बीपी कहा जाता है। इसी तरह डायस्टोलिक (Diastolic) बीपी खून की नलियों में रक्त का वह दबाव है जो हृदय की विश्रामावस्था अथवा शिथिलीकरण के समय होता है।

high bp

ज्यादा महत्त्व डायस्टोलिक(Diastolic) बीपी का ही होता है। क्योंकि इसका बढ़ा होना यह सिद्ध करता है कि हृदय अपनी क्षमता से अधिक कार्य करने में अक्षम सिद्ध हो रहा हैऔर गुर्दो या रक्त वाहिकाओं में भी कुछ गड़बड़ हो सकती है।

बीपी को कई तरह के यंत्रों द्वारा नापते हैं। इसके लिए दो भुजाओं में से किसी एक भुजा पर रबर का बैग बाँधकर उसमें हवा भरते हैं, जब भुजा में स्थिति रक्तवाहिका का बीपी और बैग की हवा का दाव बराबर हो जाता है, तो यन्त्र के डायल या पारे स्तर का नाप पढ़ लेते है आजकल घर पर ही बीपी नापने वाले यन्त्र बाजार में उपलब्ध हैं।

लो बीपी क्या है - What Is Low BP (Low Pressure) In Hindi

लो बीपी क्या है? सामान्यतः जब वयस्क व्यक्ति का बीपी 100/70 से भी कम हो जाता है उसे लो बीपी की श्रेणी में रखते हैं। लेकिन इसमें भी व्यक्ति विशेष के अनसार विभिन्नता पाई जाती हैं। उदाहरणार्थ कई व्यक्ति 90/60 बीपी होने पर स्वयं को स्वस्थ महसूस कर सकते हैं। जबकि कुछ को इससे अधिक रक्तदाव होने पर भी चक्कर या घबड़ाहट होना शुरू हो जाती है। प्रायः लो बीपी की बजाय हाई बीपी ग्रस्त रोगी को कठिनाईओं का खतरा अधिक होता है। अतः यहाँ हाई रक्त चाप की ही विस्तृत चर्चा की जा रही है।

बीपी कितना होना चाहिए - What Is Average Pressure By Age In Hindi

किस उम्र मे बीपी कितना होना चाहिये आइये जानते है। उम्र बढ़ने पर व्यक्ति का बीपी भी बढ़ता जाता है। हर उम्र के साथ अधिकतम बीपी  दिया  गया क्रमशः हैसिस्टोलिक/डायस्टोलिक बीपी है।

  • 20वर्ष की उम्र में अधिकतम बीपी 140/90
  • 50 वर्ष की उम्र में अधिकतम बीपी 160/95
  • 75 वर्ष की उम्र में अधिकतम बीपी 170/105 तक हो सकता है

जब बीपी इस स्तर से अधिक रहता है तो फिर उसे बीपी की श्रेणी में मानते है।

हाई बीपी के प्रकार - Types Of High Pressure In Hindi

एकदम किसी को हाई बीपी का मरीज नहीं माना जाता, सामान्य स्वस्थ्य व्यक्तियों का भी बीपी व्यायाम के पश्चात् अथवा अत्याधिक चिन्ता, तनाव या घबड़ाहट के समय बढ़ा हुआ मिल सकता है लेकिन उसे हाई बीपी से ग्रसित नहीं मानते हैं। एकदम से किसी को हाई बीपी का मरीज घोषित कर बीपी को नीचे गिराने वाली दवाइयाँ नहीं देते। वरना इनसे हानि की सम्भावना होती है क्योंकि इन दवाओं से बीपी ज्यादा नीचे गिर सकता है। हाई बीपी के प्रकार को तीन श्रेणियों में विभक्त किया गया है।

  • जब बीपी सामान्य से थोड़ा अधिक होता है तो उसे मामूली हाई बीपी (Mild Hypertension) की श्रेणी में रखते हैं।
  • जब रक्त चाप इससे औरअधिक बढ़ जाता है तो उसे मध्यम हाईबीपी (Moderate Hypertension) मानते हैं।
  • जब रक्त का दाव बहुत अधिकअर्थात सिस्टोलिक 200 से अधिक और डासस्टोलिक 140 से ऊपर हो जाता है तो उसे गम्भीर हाई बीपी (Mailingnet Hypertension) की श्रेणी में रखते हैं।

इस श्रेणी के मरीजों में गम्भीर जटिलताएँ उत्पन्न होने का खतरा अधिक रहता है।

हाई बीपी का कारण क्या है - What Are The Reasons For High Pressure In Hindi

हाई बीपी का कारण क्या है? यह एक महत्त्वपूर्ण तथ्य है, अधिकतर मामलों में हाई बीपी का स्पष्ट कारण, बहुत सी जॉचों के बावजूद भी पता नहीं चल पाता। ऐसे मरीजों को आवश्यक हाई बीपी (Essential Hypertension) की श्रेणी में रखते हैं।

यह देखा गया है कि इसेंसियल हाइपरटेशन (Essential Hypertension) के पीड़ितों में लगभग 70% मरीजों के घर के अन्य सदस्य भी इस तरह के हाई बीपी से ग्रस्त होते हैं। अर्थात् यह रोग पैतृक हो सकता है।

जिन स्थानों में नमक अधिक मात्रा में खाया जाता है, वहाँ भी इस तरह का हाई बीपी मिलता है।

हाई बीपी के कुल मामलों के 10 से लेकर 15 प्रतिशत में बीपी बढ़ने का कारण कोई न कोई बीमारी या रक्तवाहिकाओं की असामान्यता होती है। इनमें से कुछ महत्त्वपूर्ण हाई बीपीका कारण हैं-

  • महाधमनी (Aorta) का संकरा होना या उसमें अन्य असामान्यता आ जाना
  • गुर्दे की विभिन्न बीमारियाँ जैसे- गुर्दो में सूजन और संक्रमण सम्बन्धी अन्य बीमारियाँ (ग्लोमेरूलो Glomerulo – नेफ्राइटिस Nephritis, पाइलो नेफ्राइटिस Polio Nephritis इत्यादि) इसके अलावा गुर्दे की धमनी के संकरे होने के कारण भी बीपी बढ़ जाता है।
  • अन्तः स्रावी ग्रन्थियों की बीमारियाँ जैसे- फीयोक्रोमोसाइटोमा (Pheochromocytoma), कसिंग सिंड्रोम Cushing Syndrome इत्यादि। कई बार हारमोनयुक्त दवाइयाँ जैसे- गर्भ निरोधक दवाइयाँ और इस्ट्रोजन इत्यादि लेने से भी रक्त चाप बढ़ जाता है।
  • कई महिलाओं का गर्भावस्था के समय भी बीपी बढ़ जाता है। लेकिन प्रसव के पश्चात यह सामान्य हो जाता है।

उपरोक्त कई स्थितियाँ कसिंग सिन्ड्रोम, कोन्स सिन्ड्रोम तथा गुर्दे सम्बन्धी रोगों में शरीर में नमक में मौजूद सोडियम नामक तत्व रुक जाता है, जो बीपी की व्रद्धि में सहायक होता है।

हाई बीपी होने के लक्षण - What Are The Symptoms Of High Pressure In Hindi

अधिकतर मरीजों में हाई बीपी होने के लक्षण नहीं होते जिससे समझा जा सके कि रोगी को हाई बीपी की बीमारी है। अक्सर यह बीमारी जाँच के दौरान अचानक पता चलती है।

  • कुछ मामलों में सिर-दर्द या बार-बार पेशाब जाने की शिकायत हो सकती है
  • कभी-कभी रात को साँस लेने में तकलीफ या घबड़ाहट भी हो सकती है

हाई बीपी के कारण होने वाली समस्या - Consequences Of Untreated High Pressure In Hindi

हाई बीपी के कारण होने वाली समस्या- हाई बीपी शरीर का एक गुप्त शत्रु है जो धीरे-धीरे शरीर के प्रमुख अंगों जैसे- हृदय, मस्तिष्क गुर्दे आँखें इत्यादि की कार्य क्षमता पर बुरा असर डालता है।

(अ) केन्द्रीय तन्त्रिका तन्त्र और मस्तिष्क पर दुष्प्रभाव- हाई बीपी मस्तिष्क के लिए खतरा है। बीपी अधिक बढ़ जाने के कारण कई बार मस्तिष्क को रक्त पहुँचाने वाली खून की धमनियाँ फट जाती हैं और उनसे रक्त निकलकर मस्तिष्क के अन्दरूनी भाग में जम जाता है जिससे मस्तिष्क के वे भाग जिनमें रक्त जम जाता है।

ठीक से कार्य नहीं कर पाते। इस कारण मस्तिष्क प्रभावित हिस्सों के अनुसार शरीर के विभिन्न अंगों में लकवे () की शिकायत हो जाती है। इसके अलावा रक्त वाहिका फटने से नाक से भी खून आ सकता है। रोगी को थोड़े समय के लिए चक्कर आ सकते हैं। इसका कारण मस्तिष्क के लिए कुछ समय के लिए रक्त प्रदाय रुक जाना होता है। लेकिन रोगी के लिए सबसे खतरनाक दुष्प्रभाव तब होता । है जब मस्तिष्क की रक्तवाहिकाओं से खून रिसता है।

(ब) आँखों पर दुष्प्रभाव- आँख के परदे (Retina) को रक्त पहुंचाने वाली छोटी-छोटी रक्तवाहिकाएँ बीपी के बढ़ने से फट जाती हैं और इनसे रक्त निकलकर परदे पर जमा हो जाता है।

आँखों की अंदरूनी जाँच भी चिकित्सक इसलिए करवाते है ताकि बीपी की गम्भीरता का पता चल सके। अधिक समय तक हाई बीपी के कारण दृष्टि दोष भी उत्पन्न हो सकते हैं।

(स) हृदय पर दुष्प्रभाव- हाई बीपी की हृदय के ऊतकों में खून की कमी (इस्कीमिक-हार्ट डिसीज) और हृदयघात में प्रमुख भूमिका होती है। अधिकांश हृदय रोगियों को पूर्व में हाई बीपी की ही शिकायत रहती है।

हाई बीपी से हृदय के बाएँ निलय (बेंट्रिकल) का आकार बढ़ जाता है। और यह रक्त को शरीर में फेंकने में धीरे-धीरे अक्षम होने लगता है। इसे लेफ्ट वेंट्रीकिल फेलअर कहते हैं।

(द) गुर्दो पर दुष्प्रभाव- हाई बीपी के कारण गुर्दो को रक्त पहुँचाने वाली रक्त की धमनियाँ क्षतिग्रस्त हो जाती हैं। एवं लम्बे समय तक बढ़े हुए बीपी के कारण पेशाब में प्रोटीन्स आने लगते हैं तथा गुर्दो के कार्य करने की शक्ति कम या लगभग समाप्त हो जाती है। हाई बीपी का यह भी एक बड़ा दुष्प्रभाव है।

हाई बीपी के लिए टेस्ट - Test For High Pressure In Hindi

निम्नलिखित हाई बीपी के लिए टेस्ट करवाते हैं-

  • पेशाब की जाँच-इसमें गुर्दे से सम्बन्धित खराबी पता लग जाती है।
  •  सीने का एक्स-रे-हृदय का आकार देखने के लिए एवं इलेक्ट्रोकार्टियो ग्राम हृदय की खराबी पता करने के लिए करवाते हैं।
  • चिकित्सक को यदि गुर्दो में खराबी के कारण बीपी बढ़ने की शंका होती है तो वह गुर्दो की अल्ट्रासोनोग्राफी करवाता है तथा गुर्दो की धमनियों की जाँच के लिए रीनल एजियोंग्राफी की सलाह भी देता है।
  • इसके अलावा कई विशेष जाँचे चिकित्सकों की सलाह से करवाई जाती हैं जैसे- यदि हाई बीपी के कारण धायरॉयड ग्रन्थि गड़बड़ी के कारण होता है तो धायरॉयड हार्मोंस (टी-3, टी-4 धापटाक्सित) की जाँच करवाई जाती है।

हाई बीपी का इलाज क्या है - What Is The Treatment Of High Bp ( Pressure) In Hindi

हाई बीपी का इलाज क्या है? हाई बीपी का इलाज का उद्देश्य यह होना चाहिए कि इलाज द्वारा होने वाली जटिलताएँ उत्पन्न न होने पाएं तथा मरीज जीवन की उम्र भी बढ़ जाए। इसके अलावा इलाज इतना मॅहगा न हो कि रोगी दवा भी न खरीद सके।

अँग्रेजी दवाइयों द्वारा इलाज में चिकित्सक ऐसी दवाइयाँ चुनता है जिनके शरीर पर दुष्प्रभाव कम हो। बीमारी में पूरे मरीज का इलाज किया जाता है न कि केवल बढ़े हुए बीपी या हाई बीपी की दवाइयाँ क्योंकि जीवन पर्यन्त लेनी होती हैं। इसलिए बहुत सोच समझकर इलाज तय किया जाता है। अतः इस बीमारी से ग्रस्त लोग नीम हकीमों के चक्कर में न पड़े बल्कि योग्य और अनुभवी चिकित्सक से सलाह लें।

यहाँ अंग्रेजी दवाइयों द्वारा इलाज का विवरण देने का कोई औचित्य नहीं है। अपनी पूरी जाँचें करवाने के बाद डाक्टर की सलाह से ही हाई बीपी की दवाएँ लेनी चाहिए। वैसे मामूली बीपी बढ़ा होने पर वह दिन चर्या नियमित करने तथा नमक कम लेने एवं तनाव की स्थितियाँ दूर करने से भी नियंत्रित हो सकता है।

लेकिन जब बीपी अधिक बढ़ जाता है तो उसे उचित दवाओं द्वारा निय करना आवश्यक रहता है ताकि शरीर में अन्य जटिलताएं उत्पन्न न होने पाएँ। लिए डॉक्टर की है मदद लें ।

हाई बीपी का घरेलू इलाज और उससे बचाव - High Pressure Treatment At Home In Hindi

खान-पान की आदतों एवं कुछ योगाभ्यास इत्यादि द्वारा भी हाई बीपी को नियंत्रित किया जा सकता है। लेकिन इसके लिए दृढ़ इच्छाशक्ति की आवश्यकता है। हाई बीपी का घरेलू इलाज और उससे बचाव के लिए निम्न तरीकों को अपनाना चाहिए।

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(1) भोजन में सुधार से घरेलू इलाज- बहुत ही कम मात्रा में नमक लेने से बीपी सामान्य किया जा सकता है। हाई बीपी का घरेलू इलाज मे ऊपर से नमक लेने की आदत तो छोड़ ही दें। इसी तरह बहुत चर्बी वाली चीजें जैसे- घी, माँस, तले हुए खाद्य पदार्थ न लें। इनसे रक्त में कोलेस्टेराल की मात्र बढ़ती है। जिससे खून की नलियों में चर्बी जमा होने के कारण वे संकरी हो जाती हैं। हाई बीपी और हृदय रोगों का यह भी एक कारण होता।

भोजन में सुधार और पर्याप्त व्यायाम द्वारा मोटे व्यक्ति यदि वजन कम कर लें तो उनके बढ़े हुए बीपी में निश्चित रूप से कमी हो जाती है।

(2) नशे छोड़ने से इलाज- यह प्रयोगों द्वारा ज्ञात हो चुका है कि शराब (अल्कोहल) बीपी को बढ़ा देती है, इसी तरह तम्बाकू एवं सिगरेट या बीड़ी भी यहीं काम करती हैं। यदि इन नशों को छोड़ दिया जाए तो बीपी कुछ हद तक कम किया जा सकता है।

(3) व्यायाम से इलाज- नियमित हल्की-फुलकी व्यायाम शरीर को चुस्त दुरुस्त रखता है। जिनका बीपी बहुत अधिक नहीं बढ़ता वे हल्का व्यायाम कर सकते हैं। लेकिन बहुत अधिक बजन उठाने वाले या अधिक थकाने वाले व्यायाम न करें।

(4) योगासन एवं ध्यान (Meditation) से इलाज- हाई बीपी के मरीजों को तनाव से बचना चाहिए। तनाव कम करने के लिए योगासन एवं ध्यान सहायक हो सकता है, बशर्ते इसे पूरे मनोयोग से किया जाए।

योगासनों में बीपी कम करने के लिए शवासन सबसे अच्छा है। किसी योग्य व्यक्ति के निर्देशन में ध्यान का भी अभ्यास किया जा सकता है। इसके साथ ही हलका प्राणयाम कर सकते हैं।

यदि हाई बीपी सामान्य स्थिति में न आए तो फिर चिकित्सक के परामर्श से उचित दवाइयाँ लेना चाहिए।

इस मामले में लापरवाही ठीक नहीं होती क्योंकि बड़ा हुआ बीपी पूर्व में कोई भी जटिलता उत्पन्न कर सकता है। इसलिए प्रत्येक सप्ताह या कम से कम महीने में तीन बार इस रोग के मरीज को अपने बीपी की जाँच अवश्य करवा लेनी चाहिए।

अधिक बढ़ा हुआ बीपी शरीर के अंगों में लकवे की बीमारी उत्पन्न कर सकता है, गुर्दे खराब कर सकता है, और कई तरह के खतरनाक हृदयरोग उत्पन्न कर सकता है। यह रोग दस बड़े मारक रोगों में से एक है। अतः इस स्वास्थ्य के दुश्मन पर नियन्त्रण रखना जरूरी है।

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