हर्निया क्या है? | हर्निया के लक्षण और इलाज

किसी तन्तु या अवयव के अपने प्राकृतिक घेरे से किसी असामान्य छिद्र द्वारा, बाहर निकल आने को हर्निया कहते हैं। हर्निया का अर्थ एक शाखा भी होती है। इस रोग के परिणामों को दृष्टि और स्पर्श से बचाया नहीं जा सकता। इसको सबसे पहले जान पाने का शायद यही कारण हो। हर्निया के कारण पैदा हुई अक्षमता यहां तक बढ़ सकती है कि रोगी की आजीविका जाती रहती है।

औद्योगीकरण के इस युग में हर्निया की समस्या जटिल होती जा रही है। नौकरी में लेने से पहले स्वास्थ्य-परीक्षा लेने का महत्त्व इसी से आंका जा सकता है कि हर्निया वाला उम्मीदवार अयोग्य करार दे दिया जाता है। हर्निया से शरीर की कार्यक्षमता घटती है। बार-बार होने वाली हर्निया (रिकरेंट हर्निया) ला-इलाज साबित हुई है और सर्जन की मूल चिंता का विषय बनी हुई है।

हर्निया के मुख्य भाग

(क) थैली, मुंह, गला और शरीर।

(ख) आवरण-यह शरीर की भिन्न सतहों से बनता है।

(ग) थैली के अन्दर पायी जाने वाली चीजें-चर्बी, आंत, मूत्राशय, पेट के हर अवयव, मस्तिष्क के भाग बच्चेदानी आदि चीजें मिली हैं।

हर्निया का नामकरण

(क) कारणों को जन्म-जन्मजात और जन्मोंपरांत

(ख) स्थान पर-जांघ, पेट इत्यादि।

(ग) परिस्थिति पर रिड्यूसिविल, इरिड्यूसिविल, इन्फलेम्ड, स्ट्रेगुलेटेड, गैग्रीनस आदि

(घ) उसकी थैली में मिली चीजों पर-आंत, मूत्राशय मांसपेशी।

(ङ) अपूर्ण या पूर्ण।

हर्निया-कहां और कितनी होती है?

  • इनवाइनल-92 प्रतिशत
  • फीअरल-2.5 प्रतिशत (3 प्रतिशत पुरुषों में, 97 प्रतिशत स्त्रियों में)
  • अंबलाइकल-2 प्रतिशत-75 प्रतिशत स्त्रियों में, 25 प्रतिशत पुरुषों में)
  • इनसीजनल-1.5 प्रतिशत
  • इपीगेस्ट्रिक-1.0 प्रतिशत
  • अन्य-1.0 प्रतिशत।

हर्निया क्यों होता है?

हर्निया अस्वाभाविक या त्रुटिपूर्ण विकास से उत्पन्न होता है। जो शरीर विशेषकर तलपेट की मांसपेशियां गलत खान-पान और रहन सहन के कारण जब कमजोर हो जाती हैं तो उस वक्त पेडू में संचित विकृत पदार्थ का अनावश्यक भार आंतों पर पड़ता है, तो बहुधा आंत उतरने की बीमारी हो जाती है।

इसमें तलपेट की पेशियों में उस स्थान पर जहां वे एक-दूसरे को पार करती हुई छल्ले का रूप धारण कर लेती हैं, विच्छेद हो जाता है। उस वक्त, जिसमें पेट के सारे पाचन यंत्र रहते हैं, धक्का खाकर या भार से दबकर आंत के साथ नीचे लटक जाता है, और संधि में रुक कर गांठ जैसी सूजन पैदा करता है।

ज्ञात और अज्ञात कारणों से पहले एक कमजोर जगह बनती है, फिर इसी में होकर एक सूजन उठती है, जो बाद में शरीर के तंतु या अवयव द्वारा भर जाती है। जैसे-जैसे दबाव बढ़ता जाएगा, अधिक-से-अधिक तंतु या अवयव हर्निया की थैली में प्रवेश करता जायेगा और हर्निया का छिद्र असामान्य होता जाएगा जिसके दबाव से रक्त संचार में रुकावट होती है।

हर्निया के लक्षण

  • यह सभी जाति तथा राष्ट्र के बालकों से लेकर बूढ़ों तक को ग्रसता है।
  • शरीर के किसी भी हिस्से में हो सकता है।
  • परन्तु ज्यादा तर यह पेट या जांघ की संधि पर होता है।
  • यह अकेले या अन्य व्याधियों के साथ, एक तरफ या दोनों तरफ हो सकता है।
  • बच्चों में अक्सर यह नाभि के क्षेत्र में दिखाई पड़ता है।
  • यह गलत नाल कटने से हो जाता है।
  • रोने, खेलने, चिल्लाने पर गांठ या सूजन का रूप ले लेती है और बच्चा बेचैन हो जाता है।
  • जिस स्थान पर हर्नियां उतरता है, वहां सूजन पड़ जाती है यही उसका लक्षण है।
  • खड़े होने, चलने, फिरने और तनाव के समय यह दिखाई देता है।
  • लेटने पर यह दिखाई नहीं देता। परन्तु पुराना हो जाने पर हर समय दिखाई देता है।
  • खांसने, छींकने, अथवा दबाव से यह अधिक स्पष्ट दिखाई देता है।
  • साधारणतया घंटों तक खड़े रहने अथवा चलने के बाद पीड़ा बढ़ जाती है।
  • खिंचाव या तनाव महसूस होता है।
  • हर्निया शुरू होने पर मीठा-मीठा दर्द, बेचैनी, किसी चीज के अंदर से सरकने की अनुभूति मालूम होती है।
  • जिस समय आंत उतरती है, असाधारण पीड़ा और बेचैनी होती है।
  • शुरू में हर्निया की सूजन को चढ़ाकर कम किया जा सकता है।
  • परंतु बाद में हर्निया की सूजन को दबाकर कम करना कठिन हो जाता है और तब रोगी को उल्टी होती है।
  • हर्निया को आसानी से देखा जा सकता है। परन्तु निदान के लिए देखना और छूना दोनों ही आवश्यक है। इसलिए हर्निया के रोगी को लिटाकर दोनों ही अवस्थाओं में देखा जाता है।
  • स्वास्थ्य पर हर्निया के बुरे प्रभावों की तीव्रता, हर्निया के स्थान और उसकी थैली के अंदर पाई जाने वाली चीजों पर निर्भर करती है।
  • यदि पीड़ा के साथ उल्टी हो और वह तीव्र होने लगे तो संकेत मिलता है कि हर्निया बंधा (स्ट्रगलेट) जा रहा है। इसका अर्थ यह है कि जिस स्थान पर सूजन रहती है, उसके पास की जगह में रक्त संचार अवरुद्ध हो जाता है।
  • आंत सड़ने लगती है। (ग्रैग्रीनस) शरीर में जहर फैल जाता है और रोगी के मरने की संभावना बढ़ जाती है।

हर्निया के विभिन्न चरण

1। प्रथम चरण-छिद्र में उंगली का सिरा घुस जा सकता है।

2। द्वितीय चरण-छिद्र ढीला हो जाता है, खांसने पर धक्का लगता है।

3। तृतीय चरण-खांसने पर धक्का लगना और गांठ उभर आना।

4। चतुर्थ चरण-हर्निया की सूजन छिद्र से काफी नीचे तक चली जाती है, परन्तु चढ़ाने पर अपनी जगह पर चली जाती है किन्तु कभी-कभी दर्द भी हो जाताहै।

5।

पंचम चरण-हर्निया अब चढ़ाने पर नहीं चढ़ता तो हर समय दर्द रहता। है। कभी-कभी दर्द कम भी हो जाता है।

इलाज में जितनी देरी होगी उतना ही अधिक रोगी की दृष्टि से नुकसान होगा, क्योंकि तनाव बढ़ने से हर्निया की सूजन बढ़ती जायेगी। इसलिए तनाव कम करने के लिए इलाज तुरंत करना आवश्यक है।

हर्निया के इलाज

1। उपायों द्वारा-सबसे पहला उपचार खान-पान, व्यायाम, ठंडे व गर्म पानी से सेंक करने का है।

2। पट्टी या ट्रस (कटिबंधनी) द्वारा इलाज-इसके द्वारा हर्निया को बढ़ने नहीं दिया जाता।

3। दवाओं द्वारा-इंजेक्शन द्वारा हर्निया के छिद्र को बन्द करना।

4। आपरेशन द्वारा

और पढ़े:- आपरेशन द्वारा हर्निया रोग का इलाज

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