लंगड़ापन क्या है | लंगड़ापन में चिकित्सा
वायु के कुपित होने पर एक पैर के पक्षाघात को खंज या लंगड़ापन कहते हैं। जब वायु रोगी के दोनों पैरों को प्रभावित करती है तब उस दशा को पंगु कहते हैं। जब कुपित वायु छाती या कमर की हड्डियों को प्रभावित करके आगे या पीछे की ओर उभार उत्पन्न करती है तो उस दशा को कुब्जता या कुबड़ापन कहते हैं।
चिकित्सा
- पुराने होने पर ये रोग ठीक नहीं होते हैं।
- आरंभ में ही इनकी चिकित्सा पक्षवध की तरह करनी चाहिए।
- मालिश तथा सेंक पर विशेष ध्यान दें।
- कोलादि लेप (च.) गर्म-गर्म बांधे, उसी की पोटली से सेंक करें।
- शुद्ध कुपीलु व रसराज मिलाकर, वृहत योगराग गुगुल या पंचामृत लौह गुगुल का प्रयोग बहुत दिनों तक करें।
- खंजनकारि रस 240 मि.ग्राम प्रातः सायं बलादि क्वाथ के साथ देने से, शतावरी तेल 20 मि.लि. दूध में मिलाकर पिलाने से भी लाभ होता है।
- कुब्ज रोगी को श्रृंगभस्म 1 ग्राम, प्रवालपिष्टी 1 ग्राम, शिलाजत्वादि लौह 500 मि.ग्राम मिलाकर दूध के साथ तीन बार अधिक दिनों तक दें। छाती एवं पीठ पर प्रसारिणी तेल की मालिश कराएं और प्रसारिणी तेल ही पीने को दें।
- 500 मि.ग्राम की मात्रा में अस्थि भस्म सितोपलादि चूर्ण के साथ घी में मिलाकर दो बार देने से कुब्ज प्रसारिणी तेल की मालिश तथा पीने से भी विशेष लाभ होता है।
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