छोटी माता, चिकन पाक्स को लघु मसूरिका भी कहते हैं। यह भी मसूरिका की तरह विषाणुजन्य संक्रामक रोग है। जो मुख्यतः 10 वर्ष तक अधिक होता है, किंतु किसी भी आयु में हो सकता है।
आरंभ में बुखार हलका होता है, चौबीस घंटे में विस्फोट निकलना प्रारंभ हो जाते हैं। तब ज्वर कछ बढ़ जाता है। पहले विस्फोट कमर व छाती पर निकलते हैं। इससे पहले तालु पर हुए रहते हैं। ये विसफोट गुच्छों के रूप में दो-तीन दिन के बीच-बीच में निकलते रहते हैं तथा छिलके उतरने की अवस्था में पहुंचने के लिए डेढ़ दिन लेते हैं। अतः चकत्ते, पिटिका, पुटिका आदि सब एक समय में देखे जा सकते हैं। विस्फोट छोटे होते हैं। आपस में मिलते नहीं इनके सूखने पर त्वचा पर दाग नहीं पड़ता।
1। सामान्य लक्षण - पिडिकाओं को निकलने के 2-4 दिन पहले तेज ज्वर, सिर दर्द, कमर दर्द, ठंड, खांसी आदि लक्षण मिलते हैं।
2। विस्फोट - रोग के तीसरे चौथे दिन।
3। प्रकार-पिटिका, पुटिका आदि सभी स्पष्ट विस्फोट, गहरे गोलाकार बहुकोष्ठीय जल्दी फूटते नहीं।
4। प्राकट्य - सभी स्फोटों की बढ़ोत्तरी एक जैसी, स्फोटों में पीव लगभग आठवें दिन पड़ती है।
5। विभाजन - स्फोट सबसे अधिक शाखाओं के दूर के भागों में पाए जाते हैं। खुले बिना ढके एवं शाखाओं के बाह्य भाग में अधिक होते हैं। कक्षा में स्फोट नहीं मिलते।
6। सूखने पर दाग रह जाता है।
1। लक्षण - हलके प्रकार के विस्फोट निकलने के साथ ही।
2। विस्फोट - रोग के प्रथम दिन।
3। प्रकार- प्रकारों के बीच अधिक समय नहीं होता डेढ़ दिन में सभी स्थितियां पूरी हो जाती हैं। स्फोट ऊपर, अंडाकार, एक कोष्ठीय, दीवारें पतली, बहुत जल्दी विदीर्ण होने वाले।
4। प्राकट्य- एक ही समय में स्फोटों की सभी अवस्थाएं देखी जाती हैं। स्फोट गुच्छे के रूप में 2-3 दिन में प्रकट होते हैं। एक डेढ़ दिन में अंतिम अवस्था में बदल जाते हैं। पीव स्फोट रोग के तीसरे चौथे दिन मिलते हैं।
5। विभाजन- वक्ष एवं पीठ पर सबसे अधिक मिलते हैं। कांख विशेष प्रभावित होती है।
6। सूखने पर दाग नहीं रहता।
इस रोग में खुजली होती है। त्वचा में खुजलाने पर रक्त दूषित हो जाता है। सांस की नली में विषमयता से न्यूमोनिया तथा स्वरयंत्र के पास दूषित होने पर वहां पर सूजन होने से प्राणघातक हो सकता है।
इसकी चिकित्सा भी मसूरिका की भांति करें। यह विशेष ध्यान देने योग्य है कि घावों पर खुजली न की जाए। बच्चों के नाखून भली भांति कटे हुए व स्वच्छ होने चाहिए।
1।
इंदुकला वटिका- 120 मि.ग्राम 1x2 बासी जल काली मिर्च के चूर्ण से।
2। निम्बादि क्वाथ- 50 मि.लि। 1 मात्रा प्रातः एक बार।
3। पटोलादि क्वाथ - 10-15 मि.लि। दिन में तीन बार दें।
4। त्रिफला चूर्ण- 3-6 ग्राम तथा शुद्ध गुगुल 3-6 ग्राम दिन में तीन बार प्रयोग करें।
5। हरिद्रा चूर्ण- 1 ग्राम 1x2 करेले के पत्तों के रस से।
6। अमृतादि क्वाथ - 10-15 मि.लि। दिन में तीन बार दें।
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