मलेरिया एक जानलेवा बीमारी है। यह आमतौर पर एक संक्रमित एनोफिलीज मच्छर के काटने से फैलता है। जब यह मच्छर आपको काटता है तो प्लास्मोडियम परजीवी आपके रक्तप्रवाह से निकल जाता है। परजीवी आपके अंदर लाल रक्त कोशिकाओं को संक्रमित करना जारी रखते हैं, जिसके परिणामस्वरूप ऐसे लक्षण होते हैं जो एक समय में दो से तीन दिन तक रहते हैं। एक बार जब परजीवी आपके शरीर के अंदर यकृत की यात्रा करते हैं जहां वे परिपक्व होते हैं। कई दिनों के बाद, परिपक्व परजीवी खूनप्रवाह में प्रवेश करते हैं और लाल रक्त कोशिकाओं को संक्रमित करने लगते हैं। मलेरिया की जानकारी हम अपने इस आर्तिकिल मे बताएँगे।
मलेरिया मच्छरों के काटने से फैलता है किन्तु सभी प्रकार के मच्छर मलेरिया नहीं फैलाते। दरअसल इसके लिए मच्छर सीधे उत्तरदायी नहीं हैं।
इसका मुख्य कारक है-मलेरिया परजीवी, जिसे विज्ञान की भाषा में प्लाज्मोडियम कहा जाता है। इस परजीवी का जीवन-चक्र मनुष्य और मच्छर के मध्य अनवरत चलता रहता है।
विश्व में चार तरह के मलेरिया परजीवी हैं जो मानव में मलेरिया फैलाते हैं। इनमें से तीन पूरे भारत में और सिर्फ दो "प्लाज्मोडियम फेल्सीपेरम और प्लाज्मोडियम वाइवैक्स उत्तर भारत में हैं।
इनमें से फेल्सीपेरम प्रजाति-जानलेवा किस्म की है। तथा दवाओं के प्रति इनकी प्रतिरोध क्षमता विकसित हो जाने के कारण अधिक घातक है।
मलेरिया के कारण होने वाली 95 प्रतिशत मौतें फेल्सीपेरम की वजह से ही होती हैं। खास बात यह है कि सिर्फ मादा मच्छर "एलाफिलीज" ही मलेरिया परजीवी का संवहन करती है और वही एक मनुष्य से दूसरे मनुष्य में संक्रमण फैलाती है।
मलेरिया के लक्षण आमतौर पर संक्रमण के बाद 10 दिनों से 28 दिनों के भीतर विकसित होते हैं। कुछ मामलों में, लक्षण कई महीनों तक विकसित नहीं होते हैं। कुछ मलेरिया परजीवी शरीर में प्रवेश कर सकते हैं लेकिन लंबे समय तक निष्क्रिय रहेंगे। मलेरिया के लक्षण कुछ इस प्रकार बताए गए है-
सन् 1950 में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने मलेरिया के खिलाफ आंदोलन चलाया। इसका मुख्य कार्यक्रम डी। डी। टी. (D.D.T.) जैसी कीटनाशक दवाओं का छिड़काव था। किन्तु मच्छर डी। डी। टी। की अपेक्षा अधिक ताकतवर सिद्ध हुए और उन्होंने इसके खिलाफ प्रतिरोधात्मक शक्ति उत्पन्न कर ली। मलेरिया का इलाज का उद्देश्य रक्तप्रवाह से प्लास्मोडियम परजीवी को खत्म करना है
यही हाल कुनैन वर्ग की दवाओं के साथ हुआ। प्रारंभ में कुनैन से मलेरिया की रोकथाम में तेजी से सफलता मिली। अभी भी यह एक कारगर औषधि मानी जाती है।
किंतु प्रतीत होता है कि मच्छर इसके विरुद्ध भी प्रतिरोधात्मक शक्ति विकसित कर चुके हैं तथा इस दवा का असर कम होने लगा है। साथ ही कुनेन का मनुष्य के स्वास्थ्य पर भी बुरा असर होता है।
इसके लेने के पूर्व खून की जांच अवश्यक करा लेनी चाहिए। कुनैन का उत्सर्जन शरीर में आसानी से नहीं होता तथा यह शरीर में जमा होती रहती है। अतः इसका दुष्प्रभाव आंखों पर होने लगता है।
कई बार चिकित्सक पर्याप्त जांच के बिना कुनैन देते रहते हैं। नतीजा यह होता है कि अधिक मात्रा में लेने पर दवा बीमारी के प्रति असरहीन होने लगती है।
मनुष्य लम्बे समय से मलेरिया से बचाव के लिए वैक्सीन की खोज में है। कई वैक्सीन बाजार में आए भी हैं किन्तु उन्हें शत-प्रतिशत सफल नहीं माना जा सकता। ये अभी परीक्षण के दौर से गुजर रहे हैं।
मलेरिया का टीका बनाने में कई तकनीकी परेशानियां हैं, इसलिए इनको विकसित नहीं किया जा सका है। कोलंबिया में एक टीके पर काम जारी है। इसका नाम एस। पी। एफ। 66 है। यह ऐसी एंटीबॉडीज को उत्साहित करता है, जो लाल रक्त कणिकाओं पर परजीवी के प्रभाव को नष्ट करती है।
वयस्कों में इसकी रक्त कणिकाओं पर परजीवी के प्रभाव को नष्ट करती है। वयस्कों में इसकी सफलता की दर 40 प्रतिशत तथा बच्चों में इसकी सफलता की दर 70 प्रतिशत आंकी गई है। लगभग 41000 व्यक्तियों पर इसका परीक्षण किया जा चुका है। भारत में यह टीका फिलहाल उपलब्ध नहीं है।
दुनिया भर के वैज्ञानिक मलेरिया के लिए एक सुरक्षित और प्रभावी टीका विकसित करने की कोशिश कर रहे हैं। जब तक मलेरिया की रोकथाम और बचाव के लिए नई दवाएं उपलब्ध नहीं हो पातीं, तब तक पारम्परिक तरीकों को अपनाना ही ठीक होगा। मलेरिया से बचाव ही सर्वश्रेष्ठ है।
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